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7 May 2020 · 1 min read

कविता//कूचे में महबूब है

#कूचे में महबूब है

मीठा मीठा बोलिए संग सभी के डोलिए
चार दिनों की ज़िंदगी मौज़ वफा सब कीजिए

हर मौसम रंगीन है जीवन तो नमकीन है
वैर नहीं तू प्यार कर और दुवाएँ लीजिए

देख तुझे सब हँस पड़े ऐसा कोई काम कर
साथ चलेंगी नेकियाँ परछाई सी मानिए

नोंच रहा है आज तू कल पछताएगा यहाँ
प्यारे लुटने के लिए जी भरके तू लूटिए

शूल चुभे गर पाँव में हँसके यार निकालिए
शर्त रखेंगे दूसरे बात सही यह जानिए

आज दवाएँ भेंट कर देर ज़रा सी शोक है
मरने को है शत्रु अब क्षमा कर भी दीजिए

‘प्रीतम’ खिड़की खोल तू आज हवाएँ बोलती
कूचे में महबूब है उठके प्यारे देखिए

#आर . एस . प्रीतम

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 422 Views
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