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16 Mar 2021 · 1 min read

कुर्सी की लड़ाई

****** कुर्सी की लड़ाई ******
*************************

जब शुरू होती कुर्सी पर लड़ाई,
शत्रु बन जाते भाई भरजाई।

जिस लाठी उसकी होती है भैंस,
बात सच कहता है कालू नाई।

बोली मीठी जिसकी भला होगी,
मूर्ख जन को बनाए कर धुलाई।

झूठ का पलड़ा होता है भारी,
सच्चा देता फिरता सफाई।

कहते अक्सर है काँटों की सेज,
नतमस्तक हो जाती है सच्चाई।

कुर्सी पीछे बन गए व्यापारी,
कोसों दूर जनसेवा और भलाई।

जो बैठे तानाशाह हो जाए,
जन गण को सद से धूल चटाई।

होता सियासत का रंग अनोखा,
जनता सदा मूर्ख बनती आई।

प्रतिनिधि करोड़ों में रहें बिकते,
प्रजातंत्र से कर बेवफाई।

रंक से राजा बन लूटें खजाना,
आंखें मूंद कर दौलत कमाई।

बिन बारात बजाते बैंड बाजा,
झूठी शोहरत हौंसला अफजाई।

मनसीरत कुर्सी पीछे है पागल,
चाहे सहनी पड़े सबकी रुसवाई।
*************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
1 Comment · 826 Views
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