कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र
रेलगाड़ी अपनी रफ़्तार से चलती जा रही थी देश के बिभन्न कोनो से बिभन्न जाती धर्मो भाषा के लोग एक साथ आपने अपने गंतव्य की तरफ चले जा रहे थे किसी के बीच कोई बैर भाव नही बल्कि सभी एक दूसरे को समायोजित यह कहते हुये करते कि सफर में थोड़ा बहुत कष्ट होता है मिलकर एक दूसरे में बांट लेते ।
रेल गाड़ी को कत्तई ज्ञात नही की वह किस जाति किस धर्म किस भाषा के लांगो को उनकी मंज़िल कि तरफ ले जा रही है निरपेक्ष भाव से आगे बढ़ती जा रही थी जिसकी मंजिल आती जती वह उस स्टेशन उतरता जाता ।
आशीष मन ही मन सोच रहा था कि मनुष्य के दिमाग विज्ञान की उपज वैज्ञानिक कि खोज जब भेद भाव रहित सबके लिए समान आचरण संस्कृति का आदर्श प्रस्तुत करती है तो पर ब्रम्ह कि सबसे सुंदर रचना मनुषय क्यों निहित स्वार्थ लोभ मोह काम में उलझकर पर ब्रह्म कि मर्यादा संस्कृति को नित्य कलंकित करता है ।
वह सोचत जा रहा था स्कूल में दिखाए जाने वाले सिनेमा में श्री कृष्ण कि लीलाओं एव निष्काम कर्म का उपदेश उंसे दृढ़ चट्टान बना चुका था जिसके कारण आशीष को सिर्फ उद्देश ही ऐसे दिख रहा था जैसे अर्जुन को चिड़िया की आंख।
ट्रेन मिर्जापुर मांडा महोबा पहुंच गई जिस टी टी से रामबली महाराज ने आशीष का परिचय करवाया था ट्रेन से उतर चुके थे रेल गाड़ी महोबा से आगे बढ़ी रात बहुत हो चुकी थी एका एक ट्रेन में चेनपुलिंग हो गयी और एक ट्रेन रुक गयी उसके बाद का दृश्य बहुत हृदय विदारक भयावह था कुछ लोग खतरनाक हथियारों चाकू तमंचा आदि लेकर रेलगाड़ी में सवार हो चुके थे और बड़ी बेरहमी से सवारियों को लूटने लगे जो लोग आसानी से अपना कीमती सामान नही देता उन्हें बुरी तरह से घायल करते महिलाओ के नाक कान गले पर ऐसे झपटते जैसे किसी शिकार पर भूखा बाज़ यह सब दृश्य आशीष देख रहा था।
कुछ उपद्रवी रेलगाड़ी के पाइलट एवं गार्ड को सशस्त्र घेर कर ट्रेन को अपनी मर्जी के अनुसार चलाने हेतु दिशा निर्देश दे रहे थे।
आशीष भयाक्रांत हो गया ठीक उसी समय एक खूंखार दुर्दांत सा दिखने वाला व्यक्ति आशीष के पास आया बोला किनारे हट तेरे पास तो रेलगाड़ी का टिकट तक नही होगा हम लोगों को जल्दी अपना काम निपटाने दे ।
आशीष की उम्र महज पंद्रह वर्ष थी उसके साथ अपराध या अपराधी मानसिकता के इतिहास ही की कोई जानकारी नहीं थी वह तो वर्तमान में स्व के अभिमान के ईश्वर श्री कृष्ण को खोजने निकला था एक एक करके उसके मानस पटल पर स्कूल में दिखाए गए सिनेमा और कुरुक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण के उपदेश की स्मृति स्मरण हुई वह सामने खड़े दुर्दान्त व्यक्ति से बोला आप लोग ऐसा क्यो करते है जिनको लूट रहे है वो भी आप ही के समान है अंतर सिर्फ इतना है कि आप इस समय लूट रहे हो और ये सभी भय से लुटे जा रहे है हो सकता है इनमें बहुत से ऐसे लोग हो जो आप लोंगो से अधिक दुखी लोग हो और फिर भी अपराध के मार्ग पर न चल कर अपने लिए समाज एव संस्कार सम्म्मत रास्ते पर चलने का साहस कर रहे है यह देश आपका है ये सारे लोग आपके देश के ही है इस प्रकार एक देश एक संस्कृति का मानवीय रिश्ता तो है ही फिर आप लोग किसे भयाक्रांत कर रहे हो कभी सोचा है।
इतना सुनते ही दुर्दान्त व्यक्ति बोला हट सामने से बहुत राष्ट्र धर्म का नशा चढ़ा है तुम पर मेरा नाम कालू है और मैं काल से कम नही हूँ आशीष बोला नही मैं नही हटूंगा और अपने देश वासियों को ऐसे निर्मम आप लांगो को नही लूटने दूंगा आशीष किसी अडिग चट्टान की भांति खड़ा कालू के सामने अपने काल के निर्ममता से अनिभिज्ञ ।
तभी कालू के अन्य साथी वहां आ धमके पूरे रेलगाड़ी में चीखने चिल्लाने की हृदयविदारक आवाजे आ रही थी कालू के साथियों ने कहा क्या हुआ चलो आगे एक दो ही डिब्बे बचे है साफ करके उतर जाते है कालू बोला यह लड़का अपनी मौत के सामने खड़ा लोंगो को बचाने के लिये अपना बलिदान देने के लिए बहुत आतुर है तभी आशीष बोला मेरा देश है सभी यात्री मेरे देश वासी है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि कोई आवश्यक नही कि दुर्योधन के द्वारा ही कुरुक्षेत्र के युद्ध कि भूमिका रची गयी हो जीवन का पल प्रति पल कुरुक्षेत्र का मैदान है मुझे मृत्यु का भय अब नही है मरना एक न एक दिन तुम सबको है मैं आज मरूंगा तो तुम सभी कुछ दिन बाद बस इतना ही अंतर है कालू जी आपने कहा मैं लड़का हूँ तो आपका लड़का भी घर पर आपका इंतजार कर रहा होगा उंसे विश्वासः होगा कि उसके पिता उसके लिए एक अच्छा समाज राष्ट्र उसके भविष्य में देने के लिए सारे यत्न कर रहे होंगे जब उसे मालूम होगा कि आपका यही यत्न है तो वह तो जीते जी मर जायेगा कालू और उसके साथी आग बबूला होकर बोले अब तू ज्यादा प्रवचन दे रहा है हट जा तुझे हम लोग सिर्फ अब तक इसलिये समझा रहे है कि तू बच्चा है और तेरे पास हम लोंगो के लिए कुछ भी नही है।
तू राष्ट्र देश समाज की दुहाई दे रहा है क्या दिया है राष्ट्र ने कालू का एक ही बेटा मरणासन्न है रोज उसके इलाज में सैकड़ो रुपये लगते है कालू पढा लिखा है और हम सभी भी एक अदद रोजी का संसाधन तो दिया नही देश ने आशीष बोला कि कालू जी अगर आप अभी से अपने साथियों के साथ रेलगाड़ी के सवारियों के लूट का सामान वापस कर दो और यह कार्य सदैव के लिए छोड़ दो तो देश की माटी आपको आपके इच्छाओं को पूर्ण अवश्य करेगी यह भगवान श्री कृष्ण कि इच्छा है और कालू जी आपकी एकलौता बेटा स्वस्थ होकर आपका नाम रोशन करेगा यही सत्य है ।
कालू के साथी खूंखार और उग्र होते हुए बोले उस्ताद इसे देशभक्ति का भूत सवार है इसे ट्रेन से बाहर फेंक दो इतना कहते ही कालू और उसके साथियों ने आशीष को पकड़ कर उठा लिया और ट्रेन से फेकने वाले ही थे आशीष निर्भय मृत्यु को गले लगाने से पूर्व बोला कालू जी मैं मर भी गया तब भी आपके एकलौते बेटे को भारत माता स्वस्थ करेगी अगर मैं जीवित बच गया तो आप अवश्य मुझे अपने बेटे के विषय मे बताइएगा कालू का गुस्सा चौथे आसमान पर था उसने एव उसके साथियों ने आशीष को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया और शेष बचे रेलगाड़ी के डिब्बो में लूट पाट करते हुए अगले स्टेशन पर उतर गए ।
चारो तरफ ट्रेन में लूट कि खबर फैल गयी प्रशासन एव जी आए पी पुलिस सक्रिय हुई घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल कराया गया और घटना की जांच तपतिस शुरू हुई इधर पूरी रात आशीष बुरी तरह से घायल अचेत अवस्था मे रेलगाड़ी की पटरी के पास पड़ा रहा सुबह आस पास के गाँव वाले शौच के लिए निकले तो देखा कि एक किशोर मृत पड़ा है नजदीक के पुलिस स्टेशन को सूचना दी पुलिस ने आशीष को अस्पताल ले गई जहां चिकित्सकों द्वारा उंसे बीना जिला चिकित्सालय को रेफर कर दिया गया इधर ट्रेन में डकैती को लेकर चारो तरफ हाय तौबा मची हुई थी पुलिस जी जान से अपराधियों की धर पकड़ के लिये दबिश दे रही थी यह साधारण नही बल्कि बहुत ही असाधारण घटना थी।
पुलिस के अथक प्रयास के बावजूद सिर्फ कालू ही पकड़ा गया इधर बीना के जिला चिकित्सालय के चिकित्सको ने आशीष को महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल के लिये यह कहते हुए रेफर कर दिया कि बचने की उम्मीद नही है बच जाए तो ईश्वर का चमत्कार ही होगा आशीष को पुलिस लेकर भोपाल मेडिकल कालेज पहुंची वहां उसकी चिकित्सा शुरू हुई वहाँ के भी चिकित्सकों द्वारा आशीष की चिकित्सा औचारिक तौर पर प्रारम्भ कि गयी क्योकि उनको भी यही विश्वासः था कि आशीष बचेगा नही ।
उधर पुलिस आशीष के घर के विषय मे पता करने में जुटी थी मगर कोई ऐसा सुराग नही मिल पा रहा था जिससे कि आशीष के घर का पता मिल सके उसके पास जो पत्र रामबली जी का था उस पर त्रिलोचन जी एव रामबली का नाम प्रेषक एव सम्बोधन में लिखा था जिससे कोई महत्वपूर्ण कड़ी नही जुड़ रही थी पुलिस भी आशीष को घर से भगा मान चुकी थी एक तरह से वह लावारिस मेडिकल कालेज में पड़ा अपनी मृत्यु कि प्रतीक्षा कर रहा था।
पुलिस भी आशीष के पास ड्यूटी करते करते उदासीन हो गयी थी और ईश्वर से उसके मरने एव अपने रोज रोज कि साँसत से निजात कि प्रार्थना करते।
आशीष मई के महीने में काशी से चला था और अब शरद ऋतु आने वाली थी एव शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ होने वाला था।
इधर पुलिस परेशान थी कि आशीष को कब होश आये और कालू की शिनाख्त हो सके शारदीय नव रात्रि का पहला दिन डॉ हिमांशु ड्यूटी पर थे दिन में दिख बारह बजे एक एक आशीष के पूरे शरीर मे जबजस्त हरकत हुई जो पिछले दिनों जबसे इलाज शुरू हुआ था तबसे पहली बार हुआ डॉ हिमांशु ने अपने सीनियर डॉ वाही को तुरंत बुलाया डॉ वाही ने आशीष कि हालत का गहराई से निरीक्षण किया और बताया आशीष का शरीर रिवाइव करने कि कोशिश कर रहा है इसका स्प्ष्ट मतलब यह है कि अब तक दी जाने वाली दवाओं ने बिलम्ब से ही सही असर दिखाना शुरू कर दिया है ।
डॉ वाही ने डॉ हिमांशु को कुछ आवश्यक निर्देश देते हुए कुछ इंजेक्शन दिए और कहा आज शाम तक सम्भव है कि पेशेंट कॉन्सस हो जाये डॉ वाही के जाने के बाद डॉ हिमांशु बराबर आशीष पर नज़र रखे हुए थे शाम के करीब चार बजे हिमांशु कि ड्यूटी ऑफ ही होने वाली थी कि आशीष ने एकाएक आंखे खोली डॉ हिमांशु को लगा जैसे आज उनका डॉ बनाना सफल हो गया आज उनकी देख रेख में एक डूबते जीवन ने नए जीवन को पाने के लिए कदम बढ़ाया है ।
अब जो सिपाही आशीष की देख रेख में तैनात थे उन्होंने भी अपने उच्च अधिकारियों को आशीष के होश में आने की सूचना दी दूसरे दिन सुबह यानी शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन आशीष का बहुत गम्भीरता से परीक्षण डॉ वाही ने किया और सारे उपलब्ध एवं सम्भव जांच कराए रिपोर्ट आने पर उन्हें भरोसा हो गया कि आशीष स्वस्थ होने की तरफ तेजी से आगे बढ़ रहा है ।
आशीष का स्वस्थ तेजी से सुधर रहा था पुलिस ने चिकित्सको से परामर्श कर आशीष को मुजरिम के शिनाख्त के लिए उचित अवसर एव तिथि की मांग की चिकित्सको के दल ने विचार विमर्श करने के बाद विजय दशमी के ठीक सुबह आशीष को ले जाने की पुलिस को अनुमति दी विजय दशमी के दूसरे दिन पुलिस अपने दल बल के साथ हाज़िर हुई चिकित्सको का पैनल आशीष के साथ लिया और जेल में बंद कालू के शिनाख्त हेतु ले गए ।
आशीष पुलिस दल एव चिकित्सको के पैनल के साथ जेल पहुंचा उसने कालू को देखते ही पहचानने से इनकार कर दिया जब पुलिस दल और चिकित्सको के पैनल के साथ आशीष मेडिकल कालेज के अस्पताल लौट रहा था तब उसने रास्ते मे पुलिस दल से बड़ी विनम्रता से कहा कि आप लोगो से निवेदन है पुलिस के इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह बोले बताये क्या कहना है आशीष ने कहा कि कल्लू ही असली मुजरिम है सर्वदमन सिंह पुलिस दल एवं डॉक्टरों का पैनल एकाएक बोल पड़ा फिर तुमने पहचानने से इनकार क्यो कर दिया आशीष बोला मैं चाहता हूँ कि कालू अपना अपराध स्वय कबूले इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह बोले ऐसा हो तो सभी अपराधी जेल में नही तीर्थयात्रा पर भेज दिए जाने चाहिए ।
आशीष बोला सर मेरी एक और गुजारिश है कि आप लोग सिर्फ एक दिन के लिये कालू को उसके परिवार से मिलवाने उसके घर लेकर जाए सर्वदमन सिंह को लगा कि आशीष का किशोर मन शातिर अपराधियों की मानसिकता से अनिभिज्ञ है इसीलिए ऐसी बात कर रहा है आशीष कि बात को ना तो पुलिस दल ने गंभीरता से लिया ना ही डॉक्टरों के पैनल ने आशीष मेडिकल कालेज अपने वार्ड में आ गया ।
उधर पुलिस ने भी मान लिया कि आशीष कालू के भय से पहचाने से इनकार कर दिया है अतः अब ज्यादा माथा पच्ची करने की जरूरत नही है ।
कालू के जमानत अर्जी पर न्यायालय ने पन्द्रह दिन बाद कि तिथि दे रखी थी एक सप्ताह बाद कालू अपने जेल वार्ड में शोर शराबा मचाना शुरू कर दिया जेलर सुखविंद्र सिंह ने स्वय कुंछ जेल बंदी रक्षकों के साथ जाकर कालू से पूछा क्या बात है इतना हंगामा क्यो कर रहे हो कालू याचना के भाव से बोला जेलर साहब आप हमें सिर्फ एक दिन कुछ घण्टो के लिए मेरे परिवार को बुला दे या मुझे मिलने के लिए स्वंय ले चले सुखविंद्र सिंह ने कालू की दशा देखी वह बेबस लाचार एक बच्चे की भांति गिड़गिड़ाने के अंदाज़ में याचना कर रहा था सुखविंद्र सिंह को लगा शायद इस केश में कोई नई रोशनी पूरे मामले पर पड़े अतः उन्होंने कालू को उसके परिवार से मिलने का आश्वासन देकर अपने कार्यालय में बैठे और उच्च अधिकारियों से सलाह निर्देश लेने के बाद दो दिन बाद कालू के परिवार को मिलने की तिथि निर्धारित करने के बाद कालू को सूचित कर दिया ।
दो दिन बाद पुलिस दल कालू की पत्नी कलावती पुत्री रम्या और बीमार पुत्र रमन को लेकर हाज़िर हुई कालू को हथकड़ी में देख उसकी पत्नी कलावती एव पुत्री रम्या फुट फुट कर रोने लगी तभी बीमार बेटा जिसका इलाज कालू के जेल में रहने के कारण ठीक से नही हो पा रहा था और उसकी हालत मरणासन्न थी दोनों हाथ जोड़ कर अपने पिता से बोला बापू एक मेरी विनती है कालू बोला बोल बेटा रमन ने कहा मेरी जिंदगी का तो अब कोई भरोसा नही आप मेरी एक इच्छा पूरी कर दो कालू बोला क्या? रमन बोला बापू तुम गुनाह कबूल कर लो कालू निरुत्तर बुत बना रह गया कुछ देर बाद बोला जेलर साहब क्या मेरे बेटे का इलाज वही हो सकता है उसी लड़के के ठीक बगल वाले बेड पर जो लड़का शिनाख्त के लिए आया था जेलर सुखविंद्र को तो जैसे पूरे अपराध के सुलझने का रास्ता मिल गया हो उन्होंने इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह से सारे तथ्यों पर विचार विमर्श किया और इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह ने मेडिकल कालेज के चिकित्सकों से नीर्णय के अनुसार रमन को आशीष के ही वार्ड में चिकित्सा हेतु यह मान कर भर्ती कराया गया कि बचेगा तो है नही अतः कालू की बात भी रह जायेगी और इतना पेचीदा केश भी सुलझ जाएगा ।
रमन जब मेडिकल कालेज में आशीष के वार्ड में आया तो आशीष को चिकित्सको ने रमन की सच्चाई बाता दी हालांकि दोनों की बीमारी के अलग वार्ड थे फिर भी विशेष परिस्थितियों में दोनों को एक ही वार्ड में रखा गया था ।
कालू के जमानत अर्जी के सुनावाई के पेशी के दिन कालू की मर्जी के अनुसार आशीष को भी कोर्ट में पेश किया गया न्यायालय में जस्टिस रहमान बैठे और कालू की पुकार हुई जज साहब ने ज्यो ही कहा कि कालू के खिलाफ सबूत नही है और इसे और अधिक दिन जेल में नही रखा जा सकता तभी कालू बोल पड़ा नही जज साहब मैं गुनाहगार हूँ मैं अपना जुल्म कबूल करता हूँ और अपने साथ सभी अपराधियों के नाम एव पते बताने को तैयार हूँ हमने लूट पाट अवश्य किया है मगर किसी की ना तो हत्या की है ना ही कभी कोशिश और आशीष की तरफ मुखातिब होकर बोला पहचानो हमे बच्चे मैं ही था या नही आशीष ने भी शिनाख्त कर दी ।
अब इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह को समझ मे आ गया कि आशीष ने जेल में कालू को पहचानने से इंकार करते हुए उसे उसके परिवार से मिलने की बात क्यो कर रहा था जस्टिस रहमान ने इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह को कालू के साथियों को जल्द से जल्द अरेस्ट करने का आदेश दे दिया आशीष को लेकर पुलिस दल मेडिकल कालेज चला आया और इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह कालू को लेकर उसके सभी साथियों को अरेस्ट करने की मुहिम पर निकल पड़े ।
इधर रमन कि हालत बेहद नाजुक हो गयी खून की उल्टी होने लगी और मरणासन्न हो गया डॉक्टरों ने भी हार मान लिया मगर डॉ वाही और हिमांशु रमन को मुर्दा समझ कर अपने अनुभव को आजमाने लगे।
इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह ने कालू के एक एक साथी को बड़ी भाग दौड़ के बाद अरेस्ट किया पुनः कालू की पेशी उसके सभी साथियो के साथ जस्टिस रहमान के न्यायालय में हुई जस्टिस रहमान ने कालू से पूछा कि जब तुम्हारे पास साथियों सहित बच निकलने का रास्ता था तब तुमने क्यो अपना जुर्म कबूल क्यों किया?
कालू बोला जज साहब जब हम लोग चलती ट्रेन में लूटपाट का आतंक मचा रहे थे तब वही बच्चा जिसने हमे शिनाख्त करने से इनकार कर दिया था हम लोंगो से अकेले उलझ गया जबकि रेलगाड़ी में एक से बढ़कर एक लोग थे कोई कुछ नही बोला बच्चे को रेलगाड़ी से बाहर फेंकने से पहले बहुत विवाद हुआ था बच्चे ने उस समय भी कहा था कि भारत देश बहुत प्यारा देश है इसके कण कण में देवता निवास करते है हमारी मातृ भूमि भारत माता अपने किसी संतान के साथ अन्याय नही करती है और बहुत कुछ जो हमे याद नही है याद है तो अपने देश की संस्कृति संस्कार जिसे हमने अपने स्वार्थ में तिलांजलि दे दी थी ।
अब मेरा रमन चैन से मर सकेगा उसके मन पर उसके बापू के अपराधों का बोझ नही होगा इतना कहते कहते कालू फफक कर रो पड़ा जस्टिस रहमान को लगा कि आज कैसा मुजरिम आ गया है उनके जीवन मे अपने किस्म का यह अजीब मामला था उन्होंने कालू को सरकारी गवाह बना दिया ।
इधर रमन की हालत बहुत खराब थी माँ कलावती और बहन रम्या का रो रो कर हाल बेहाल था आशीष कलावती के पास गया और बोला माई चिंता मत कर कान्हा भोले शंकर सब ठीक ही करेंगे डॉ वहीं एवं डॉ हिमांशु ने उम्मीद का दामन नही छोड़ा था करीब एक सप्ताह बाद रमन के स्वास्थ में कुछ सकारात्मक सुधार दिखने लगे आशीष विल्कुल स्वस्थ हो चुका था उंसे अब जाना था लेकिन डॉक्टरों ने इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह को सूचित किया इंस्पेक्टर साहब ने जस्टिस रहमान के न्यायालय में आशीष को मेडिकल कालेज से मुक्त करने एव अपनी इच्छानुसार जाने की अनुमति मांगी तारीख पड़ी और सुनवाई हुये कोर्ट में आशीष को देखते ही कालू बोला जज साहब यही वह बच्चा है जिसने बिना किसी युद्ध के जीवन को कुरूक्षेत्र एव पल प्रति पल को देश के लिये मर मिटने के लिये प्रेरणा दिया यह बच्चा अभी हाई स्कूल की परीक्षा भी नही पास कर सका है हम स्नातकों को शिक्षा कि रोशनी दिखा गया हम सभी इसके ऋणी है जिसके कारण देश एव राष्ट्र धर्म को लूट कि प्रयोगशाला में समझा गया ऐसे किशोर नौजवान देश भक्तों से अपने देश का भविष्य बनेगा ना की हम जैसे पढ़े लिखे लोंगो से जो साधारण से दुःख कष्टो से घबड़ाकर अनैतिक आचरण करने लगते है और शिक्षा और दिमाग का शातिर बेजा इस्तेमाल करने लगते है।
जस्टिस रहमान ने आशीष की तरफ मुस्कुराते हुये बोले अब कहा जाएंगे नन्हे फरिश्ते आशीष बोला जहाँ ईश्वर ले जाये अभी तो हमे उज्जैन जाना है महाकाल के दरबार मे जस्टिस रहमान ने इंस्पेक्टर सर्वदमन को आदेश दिया कि जब भी आशीष महाकाल जाना चाहे पुलिस इनके जाने की उचित व्यवस्था करें ।
आशीष लौट कर आया मेडिकल कालेज भोपाल और कलावती से बोला माई मैं तब तक नही जउँगा जब तक रमन ठीक ना हो जाए ।
इधर डॉ हिमान्शु एवं डॉ वाही ने रमन की एक बार पुनः गहन जांच गरायी रिपोर्ट में आया कि रमन के दाहिने फेफड़े में होल है एव पेट मे अल्सर जिसके कारण इसे अन्य और परेशानियां है जो इसे मृत प्रायः बनाये हुए है डॉक्टरों ने कृत्रिम स्वशन प्रणाली पर रख कर रमन के पेट से अल्सर निकाला और टी बी की चिकित्सा शुरू की लगभग तीन माह में रमण की हालत में आश्चर्यजनक सुधार होने लगा और छः महीनें में वह स्वस्थ हो गया इधर आशीष मई में काशी से चला था और अप्रैल एक वर्ष रेलगाड़ी के हादसे में ही उलझा रहा अब वह उज्जैन जाने के लिये इंस्पेक्टर सर्वदमन से मिला इंस्पेक्टर साहब ने उसके जाने कि व्यवस्था कर दी ।
आशीष जब जाने लगा तब रमन की माँ से मिलने गया बोला माई मेरे जाने का समय आ गया है अब तुझे चिंता करने की जरुरत नही है ईश्वर तेरे साथ है तेरा रमन बहुत बड़ा आदमी बनेगा कलावती फुट फुट कर रोने लगी बोली तू किस माईया की औलाद है रे तेरी माई धन्य है हर मां तेरे जैसी औलाद चाहती है रम्या भी रोने लगी वातारण बहुत करुणामय हो गया इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह ईश्वर का धन्यवाद कर रहे थे कि तेरी दुनियां में तू जाने किस रुप मे मिल जाय उन्होंने आशीष को प्यार सेल्यूट किया और विदा किया।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।