कुम्भ की डुबकी संग देवदर्शन
गोविन्द की लीला रंग लाई,
कृष्ण हरि ने राह बनाई,:(योजना):
आस्था कि डुबकी लगाने,
प्रयाग राज के संगम पे नहाने,
चले हम कुछ भाई,
साथ में थी बहन ➖भौजाई,
शाकम्बरी भाभी,साथ में आइ,
घर पर रह गये थे,प्रेम भाई,
मनोरमा संग कृष्णा राजे,
लीला भाभी अपनी भावज संग विराजे,
कुसुम कृष्णेश्वरी बन साजे,
राजेन्द्र,भार्या,राजेश्वरी संग आये,
चन्द्र मोहन पत्नि सीता को लाये,
अन्य निकट सम्बन्धी भी साथ में आये,
प्रभु तुम्हारी महिमा न्यारी,
हम पर कीन्ही कृपा भारी,
संगम में हम डुबकी लगाए,
फिर हम काशी में आये
विश्वनाथ जी के दर्शन पाये,
काल भैरव को फिर हम ध्याये,
हुई भोर तो हम अयोध्या की यात्रा किन्ही,
सरयू मया मे डुबकी लीन्ही,
राम लखन कि छवि अति भायी,
साथ में हैं जानकी माई,
बानर संग हनुमान बिराजें,
तुलसी दास प्रभु गुण गायें
अब आगे थी यात्रा करनी,
लेकर हम प्रभु राम कि धूरी,
नैमिशारण्य धाम है आला,
यहाँ बिराजते तिरुपति जी बाला,
राम लखन,को हनुमान उठाऐं,
अहि रावण को वहीं पछाडें,
महाकाली कि छवि विकराला,
सीता जी कि सखि ललिता बाला,
वेद ब्यास सुख देव सतरुपा,
लिखे वेद पुराण अनुठा,सूत जी कथा सुनाते,
सौनकादि ॠषि,ज्ञान को पाते,
जब कभी हम भटक से जाते,
पढ सुन यह तब राह हम पाते,
एक तू सच्चा,बाकि सब झुठा,
जो देखा,अनुभव किया,वो कुछ लिखा,
भूल चुक को प्रभु माफ हमें करना,
राह हमें तुम दिखाते रहना।