कुम्भाभिषेकम्
कुम्भाभिषेकम्
अमृतकलश का वो एक घट
रणक्षेत्र बना था सिंधु तट…
लाज रखने सत्य धर्म का
युद्ध हो रहा था अति विकट…
छलके नहीं एक बुंद अमृत
शशिदेव पकड़े थे हाथ घट…
रविपूंज से आहत असुर था
शनिदेव बृहस्पति के संग थे जयंत..
छलका धरा फिर भी अमृत घड़ा
जहाँ बूंदे गिरी वो अब मोक्षधाम…
हरिद्वार नासिक उज्जैन प्रयाग
गंगा गोदावरी शिप्रा त्रिवेणी के ठाम..
वो युद्ध बारह दिवस का था
समय के हाथों सब विवश था…
गुरु बृहस्पति का वो एक दिन
पृथ्वी के एक बरस का था…
बृहस्पति भ्रमण कर आते वृषभ राशि
और सूर्य चंद्र होते हैं मकर राशि…
तब पुर्णकुंभ त्रिवेणी संगम के तट
तीर्थराज प्रयाग में धन्य पृथ्वी के वासी..
बृहस्पति भ्रमण कर आते कुंभ राशि
और सूर्य गोचर हो जब मेष राशि…
लगता पूर्णकुंभ तब गंगा हरिद्वार तट
कट जाते हैं पाप धन्य पृथ्वी के वासी..
बृहस्पति और सूर्य यदि दोनों सिंह राशि
गोदावरी तट पर धन्य पृथ्वी के वासी…
सभी अखाड़ों के संत करते हैं बखान
सिंहस्थ कुंभ त्र्यंबकेश्वर नासिक महान..
बृहस्पति भ्रमण कर आते सिंह राशि
और सूर्य गोचर हो जब मेष राशि…
सिंहस्थ कुंभ तब शिप्रा उज्जैन तट
महाकाल नगरी में धन्य पृथ्वी के वासी…
बारह राशि सत्ताईस नक्षत्र नभ में हैं
वो खगोलीय घटनाओं के दृढ़ स्तंभ है…
आज सनातन से है पूरा विश्व अचंभित
अंतरिक्ष विज्ञान का यह पुरातन थंभ है…
पूर्ण कुंभपर्व के भी तीन उपपर्व हैं
मकर संक्रांति में होता शाही स्नान…
वसंत पंचमी और माघी अमावस्या
बाकी दो उपपर्व भी हैं अमृत समान…
मृत्योर्मा अमृतं गमय का यह मंत्र है
यह मृत्यु पार करने का शाश्वत प्रयास…
सांस्कृतिक चेतना का यह लोकमंच है
जीवन समर का कुम्भ कल्पवास…
करो मन से महाकुंभ का अभिषेक तुम
सभी विघ्न बाधाओं को कर चूम-चूम…
कुछ रिवाज है सबके अलग,
न जात हो ना वर्ण हो ,
बस हिन्दू हो तुम, बस हिन्दू हो तुम..
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २५/१२/२०२४ ,
पौष,कृष्ण पक्ष,दशमी ,बुधवार
विक्रम संवत २०८१
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