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14 Feb 2024 · 1 min read

कुदरत से मिलन , अद्धभुत मिलन।

क़ुदरती अहसास को काव्य रूप देने का एक
छोटा सा प्रयास……

कुदरत से मिलन , अद्धभुत मिलन,
एक ऐसा मिलन मिले ,अंतः करण।
बाते भी हुई, अहसासों में,
मिली स्वांस स्वांस मुलाकातों में।

बृक्षों ने पत्र हिलाकर के,
धीमे धीमे करतल ध्वनि दी।
मंद मंद पवन ने बह के,
स्वागत किया सत्कार किया।

अम्बर ने जैसे ही देखा,
बो ठहर गया न आगे बढ़ा।
बादल भी जैसे छटने लगे,
बो देख मुझे मुस्कुरा दिए।

बसुंधरा धीमे स्वर में बोली,
आ पुत्र गोद में इठला दे।
थी बरसों से में तरस गई,
सब मेरे कोई न इठलाया।

मैं बोला मां प्रणाम तुझे,
“दीप” आया इसे हंसा दे मां
सदियों से हसनाँ भूल गया,
बिठा गोद, माँ इठला दूंगा।

-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा

Language: Hindi
1 Like · 138 Views

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