‘ कुदरत का वरदान ‘
रिमझिम रिमझिम बारिश मन को भाये
गरजे जब बदरा मन मोरा घबराये ,
कड़कड़ाती बिजली जब चमक दिखाये
दूर कही जाकर ये ज़रूर गिर जाये ,
चमकती है ये पहले आवाज़ बाद में आये
जलकणों का घर्षण ये हमको दिखलाये ,
काली घनघोर घटा जब – जब घिर जाये
जन मानस को अपने घरों में समेट लाये ,
जब दो दिन कस कर मूसलाधार होये
तीसरे दिन फिर देखो सूरज की पुकार होये ,
जीवनदायनी बरसात जब धरा पर आये
चर – अचर सबको तृप्त ये कर जाये ,
कुदरत के वरदान से बारिश हमको मिल जाये
बदले में हमसे वो कुछ भी तो नही पाये ,
परेशान होकर जब वो हाहाकार मचाये
रक्षा करो प्रभु कहकर तब हम चिल्लायें ,
ये दुनिया क्षण भर में कुछ से कुछ कर जाये
कुदरत के आगे उसकी एक नही चल पाये ।
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रसारित
( ममता सिंह देवा , 28/05/2021 )