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29 May 2021 · 1 min read

‘ कुदरत का वरदान ‘

रिमझिम रिमझिम बारिश मन को भाये
गरजे जब बदरा मन मोरा घबराये ,

कड़कड़ाती बिजली जब चमक दिखाये
दूर कही जाकर ये ज़रूर गिर जाये ,

चमकती है ये पहले आवाज़ बाद में आये
जलकणों का घर्षण ये हमको दिखलाये ,

काली घनघोर घटा जब – जब घिर जाये
जन मानस को अपने घरों में समेट लाये ,

जब दो दिन कस कर मूसलाधार होये
तीसरे दिन फिर देखो सूरज की पुकार होये ,

जीवनदायनी बरसात जब धरा पर आये
चर – अचर सबको तृप्त ये कर जाये ,

कुदरत के वरदान से बारिश हमको मिल जाये
बदले में हमसे वो कुछ भी तो नही पाये ,

परेशान होकर जब वो हाहाकार मचाये
रक्षा करो प्रभु कहकर तब हम चिल्लायें ,

ये दुनिया क्षण भर में कुछ से कुछ कर जाये
कुदरत के आगे उसकी एक नही चल पाये ।

स्वरचित , मौलिक एवं अप्रसारित
( ममता सिंह देवा , 28/05/2021 )

2 Likes · 4 Comments · 512 Views
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