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3 Dec 2021 · 1 min read

कुदरत का कानून 

डा ० अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
कुदरत का कानून

परछाई ने साथ् छोडा है जबसे हमारा
रौशनी से मुझको डर लगने लगा है
अन्धेरे में हमको अच्छा लगने लगा है
मिलते हैं मिलने वाले अभी भी जो कदरदान हैं
हमारा साथ् जिन्हे जन्म से ही अच्छा लगा है
तबियत से तो हम बेफिक्र हैं बाक़ायदा
उम्र भी कोई चीज़ होती है तयशुदा
आज 25 की कल 35 की फिर 45 की
दिखने का क्या है जो 15 के लगते हैं यदाकदा
ये तो उपरवाले के शुक्र का फायदा
चलिए कुछ देर हमारे साथ रहिये अच्छा लगेगा
गुफ़्तगू करेंगे प्यार से है ये वायदा
लोग मिलते है बातें हांकते हैं बड़प्पन की
वज़न तो होता नहीं है उनमें अपनी उम्र का
मुझे गिला नहीं किसी से कि उसने ऐसा क्यों कहा
पर सड़क का भी होता है कोई कायदा
नियम था के हम भी अपने सर को रखेंगे ढक कर
जब भी निकला करेंगे बाहर क़सम से
देखिये गए थे भूल
एक बिमारी ने फिर से दिखाया सभी को रास्ता
आदमी है गलतियों का पुतला मानता कहाँ
ठोकर न लगे जब तलक पहचानता कहाँ
चुन्नू हो के मुन्नू हो याके फ़रीद ख़ानम
खुद से नहीं माने तो डंडे से मनाएगा ख़ुदा
परछाई ने साथ् छोडा है जबसे हमारा
रौशनी से मुझको डर लगने लगा है
अन्धेरे में हमको अच्छा लगने लगा है
मिलते हैं मिलने वाले अभी भी जो कदरदान हैं
हमारा साथ् जिन्हे जन्म से ही अच्छा लगा है

Language: Hindi
711 Views
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