“कुण्डलिया”
“कुण्डलिया”
~~~~~~~~
स्वर्ण रश्मियां आ रही, देखो चारों ओर।
तम मिटने पर हो गई, उजली मधुमय भोर।
उजली मधुमय भोर, सुगंधित फूल खिल रहे।
और दृश्य में मधुर, अनेकों रंग मिल रहे।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, खिल उठेगी सब कलियां।
देखो तो हर ओर, छा रही स्वर्ण रश्मियां।
~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १०/११/२०२३