कुण्डलिया
पानी सबको चाहिए ,जीवन का है मूल ।
संरक्षित कर आज से ,मत कर कोई भूल ।।
मत कर कोई भूल ,छोड़ मत इसको बहता ।
समझ अमृत शुचि तुल्य ,ग्रन्थ भी इसको कहता ।।
करता रक्षा प्राण ,फूटती कंठों वाणी ।
समझो तुम अनमोल ,मिले सबको ही पानी ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
10/7/2022