कुण्डलिया छंद
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कुण्डलिया छंद
पानी के सह साथ में , लौहा करता भूल ।
सबकुछ अपना खो रहा,ब्याज बचे ना मूल ।।
ब्याज बचे ना मूल ,सकल विकृत हो जाता
सौंपी जिसको देह,वही कुरेद कर खाता
कह भूधर कविराय, हुई अब जंग पुरानी
माथे कालिख पोत ,मनुज है पानी पानी ।।
भवानी सिंह ‘भूधर’
बड़नगर, जयपुर