कुछ हम निभाते रहे, कुछ वो निभाते रहे
वो सुबह सबेरे, ज़्यादा मुस्कुरा कर पेश आया,
जिसने कल रात, मेरे पीठ पर वार किया था।
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उसने कभी इज़हार-ए-इश्क़ हमसे किया नहीं,
कहता है, उसने उम्रभर हमसे प्यार किया था।
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जुस्तुजू इश्क़ से शमशीर तक आ गई उस तरफ़,
सुना, मैंने नज़र ही नज़र उनसे इक़रार किया था।
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वो चाहते थे, उनकी नज़र के सामने रहा करूं,
और उन्हें मेरी गुमनामी ने, बेककार किया था।
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याद नहीं, वो कौन सा तंग सफ़र रहा होगा मेरा,
जब दरिया, मैंने उनकी किश्ती से पार किया था।