कुछ रिश्ते
वर्षों गुजर जाते हैं
कुछ रिश्ते बनाने में
मौसम बदल जाते हैं
उनके करीब आने में
किस्मत से ये रिश्ते
बन भी जाएं तो यारों
आशियाने उजड़ जाते हैं
इनको निभाने में
विश्वास के कच्चे धागों से
इनकी तकदीरें बनती हैं
सच्चे प्रेम के अमृत से
मन की तस्वीर संवरती है
ग़म छीन कर उनसे उन्हें
खुशियों की सौगात दें
तब कहीं सपनों की कलियां
हकीकत के रंग में ढलती हैं
मुश्किलें बढ़ जाती हैं
प्यार की लौ जलाने में
बर्षों गुजर जाते हैं
कुछ रिश्ते बनाने में
इस तरफ से प्यार बरसे
उस तरफ से भी करार
दोनों की धडकनों को हो
एक दूजे पे ऐतबार
रिश्तों के बाग को
वफ़ा के आंसुओं से
सींच दो
फिर जिंदगी की राह पे
मुस्कुराएगी बहार
सदियां गुजर जाती है
ऐसे रिश्ते भुलाने में
वर्षों गुजर जाते हैं
कुछ रिश्ते बनाने में।
–देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”