कुछ भी होगा, ये प्यार नहीं है
साथ मिलना मिलाना हो, समझना या समझाना होगा
हमेशा आस पास रहना हो, हरदम खयाल रखना हो
परवा करना या करवाना, एक दूसरे पर अधिकार् जताना
यह सब कुछ तो होगा ही, लेकिन वह प्यार तो नहीं होगा
आधुनिकता की होड़ में, हमसे क्या कुछ नहीं बदला गया
रिश्तें नाते, धर्म ना समाज, बाबुल का घर भी छोड़ा गया
पश्चिमी सभ्यता की आड़ में, हमारी संस्कृति से तोडा गया
माँग सिंदूर मलगसूत्र बिन शादी के, प्यार हम से जोडा गया
सुंदरता की प्रतिस्पर्धा में, कपड़ो कि अश्लीलता बताई जाती हैं
यौवन की नग्नता से, जगली भेड़ियों की लार टपकाई जाती हैं
तब इन भेड़ियो को, अपनी बहन, बहु, बेटियाँ दिखाई देती है
मरे को भेडिया मुह नहीं लगता है, हेवान टुकड़ों में काट देता है
धर्म मझब की आड़ मे, हेवान इंसानियत को जुकलाते है
दिन महिना कुछ सालों में, ये पिशाच केसा यौवन पाते हैं
जिन्दा की आबरू लूटते, मरने पर 30-40 टुकड़े काटे जाते हैं
पकड़े जाने पर संयोगी, यह महोबत का मतलब समझाते हैं
वेशवि दरिंदों का तो, किसी धर्म मजहब से नहीं कोई नाता है
इंसानियत के दुश्मनों को, कानून सजा भी कहा दे पाता है
सालों बाद में मिले फासी तो, इस गुन्हा कि ये सजा नहीं है
अब सालो ना भटकाना है, इन दरिंदों को तुरंत ही लटकना है
अनिल चोबिसा