“कुछ भी नहीं हूँ मैं”
“कुछ भी नहीं हूँ मैं”
शुमार न करना जग वालों
गिनी नहीं जाती हर शय,
इतना ही कहूंगा फख्र मुझको
कि कुछ भी नहीं हूँ मैं।
“कुछ भी नहीं हूँ मैं”
शुमार न करना जग वालों
गिनी नहीं जाती हर शय,
इतना ही कहूंगा फख्र मुझको
कि कुछ भी नहीं हूँ मैं।