*********” कुछ बात कर *********
*********” कुछ बात कर *********
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फिर से लगी है वो लडी कुछ बात कर,
सावन झड़ी है आ गई कुछ बात कर।
क्यारी गुलाबों से लदी खिलती रहे,
हर फूल महका कह रहा कुछ बात कर।
तन हुस्न का सागर हिलोरे खा रहा,
यूँ डूबने से यार पहले कुछ बात कर।
यौवन भरी खुशबू लुभाती तन बदन,
कैसे बचाऊँ क्या करूँ कुछ बात कर।
पहले किधर थे तुम भला जो अब मिले,
जो मिल गये हो तो जरा कुछ बात कर।
दिन रात मनसीरत चले तेरी डगर,
रख लौट कर पग जरा कुछ बात कर।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)