कुछ पाना आसान नहीं
यूं ही नहीं आंखें अब
भींगती हर बात पर
सब अहसास समेटे है
तब ज़िन्दगी सजाई है ।
संभले हाथों का सफर है
पाषाण से प्रतिमा होना
मौन घुटे जब भीतर सब
तब शब्दों ने लय पाई है ।
आसान इतना भी नहीं
रास्तों पर बढ़े जाना
बहुत लड़खड़ाए तब
संभलने की सीख पाई है।
है मूल्यवान बस वही
सहन की सामर्थ्य जिसमें
बिना तराशे कब कहो
हीरे ने चमक पायी है।
ईश के अवतार राम
पर सहे असीम वेदना
निज का सर्वस्व लुटा
पुरुषोत्तम उपाधि पाई है।