कुछ ना लाया
. नमन मंच बेजुबान ख्वाइश
विषय मन के सिवा कुछ ना लाया
विधा मुक्तक
दिनांक. १४:६:२०२४
लिखी गजल पर तेरा नाम ,मेरी कलम से चढ़ ना पाया ।
उठा बवाल पर अब तेरा नाम ,आहिस्ता से लिखना पाया।
कलम की नोक को ना करो बदनाम
,स्याही की दावत को आज भर ना पाया !
जेब खाली ना थी मेरी, करने दो मेरा काम
,बाजार जाने की सुद आज बना ना पाया ।
बार-बार मन में आकर क्यों करती हो मेरा काम
,प्रभात की पहली भोर को उठ ना पाया।
हंसी तेरे मन में रोक रही थी मेरा काम ,
मन ही मन तेरे भय से, आज मुस्करा ना पाया ।
आज तुम पास ना आती तो हो जाता तेरा काम
. ,मन लगाकर कह पाता आज तेरा नाम लिख हा पाया
सपनों की बन तु कभी तो मेरी मुस्कान
,एकान्त से परे हो मैं तेरी याद को रोक ना पाया
अपनी की मुझे जरूरत नही सुन लो मेरा अजान ,
तुम्हे पाने का कहूंगा नही, बोल ना पाया
बैंक का खाता है मेरा विरान ,
गरदन नीचे कर कहूंगा दिल के सिवा कुछ ना लाया।
भारत कुमार सोलंकी