फिर वही बात
फिर मेरा नाम उसकी जुबां पर
फिर वही प्यार उसका बेइंतहा पर
फिर उसके ख्वाबों ख्यालों में था में
फिर उसकी आँखें नमी आसमा पर
फिर उसको दुनिया ये जीने ना देगी
फिर हमसे दूरी वो सह ना सकेगी
वो सोचेगी इक पल
में देखूँ सनम को
मगर कैसे भूलूं जो दी है कसम वो
कभी गहरी रातों में सो ना सकेगी
कभी मेरी यादों में रो ना सकेगी
कभी फासला ये नहीं दूर होगा
मिलन अपना किस्मत को मंजूर होगा
वो है तन्हा वहां खुश में भी नहीं
बिन उसके मंजिल ‘ खण्डहर ‘ कुछ नहीं
फिर उसने मुझको कहा “देव” सुन लो
तुम हो सांसे मेरी जिंदगी कुछ नहीं