//•••कुछ दिन और•••//
खड़ी दुपहरी की तपिस में
छांव की खोज में रहिएगा
जिस गांव में बचपन गुजरा है
उस गांव की ख़ोज में रहिएगा
तुझमें बसती दुनियां जिसकी
सम्हाल के रक्खा आंचल में
जिस माँ ने तुझको जन्म दिया
उस माँ की ख़ोज में रहिएगा
भौतिक सुविधा के चक्कर में
दिनभर बौराया रहता है
जो पल दे सके सकूं तुझको
उस पल की ख़ोज में रहिएगा
बढ़ चली है,मन की अकुलाहट
क्या बचा है,अब क्या कहिएगा
जिस विधि इस समय को काट सके
उस विधि के ख़ोज में रहिएगा
कोरोना के क़हर से सहमी दुनिया
घर में ही चैन से रहिएगा
कुछ दिन और कष्ट के सह लीजिए
“चुन्नु” ताउम्र मौज़ में रहिएगा
//•••• कलमकार ••••//
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)