कुछ तरीके की, कुछ सलीकों की बातें
कुछ तरीके की,
कुछ सलीकों की बातें,
कुछ सपने
कुछ आँखों में कटती रातें,
कुछ वाजिब सी उम्मीदें,
कुछ हसरतों पर भारी ज्ज़बातें,
मत पूछ मेरी ज़िंदगी का सफरनामा,
रहा है सालों तक कदमों में ज़माना,
कई आते जाते रहे मेहमान बनकर,
मैंने मेरे मेहमान को भगवान जाना,
दिल न टूटे कभी किसी का मेरे कारण,
दिल को अपने मैंने अपना न माना,
ज़ुल्म सहता रहा वो भी मेरी तरह,
और रौंदा जाता रहा है मनमाना,
अपनी मन्ज़िलों पर पहुंचा दिया कितनो को,
आज तक तलाशता रहा ये एक ठिकाना,
कई तो आज भी खड़े है इंतज़ार में,
वो ही न समझा जिसको सब कुछ जाना,
शामिल हो जाये इस जहां की दौड़ में,
आओ लिखे कुछ अलग सा एक अफसाना,
दिल निकाल चुके लगाये बेजान कलपुर्जे तुम,
यादें,रिश्ते,वादे,भूले सबका आशियाना,
नही जुड़ा है दिल किसी का टूटने के बाद,
बेमतलब गढ़ता रहा हर मनु नया बहाना.
मानक लाल मनु