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19 Sep 2017 · 2 min read

कुछ घनाक्षरी छंद

कुछ घनाक्षरी छंद
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
छन्द जो घनाक्षरी मैं लिखने चला हूँ आज, मुझको बताएँ जरा कहाँ कहाँ दोष है।
या कि मैँ हूँ मन्दबुद्धि लिख नहीँ पाता कुछ, सिर पे ये झूठ ही सवार हुआ जोश है।
मेरी कविता से नुकशान बड़ा गृहिणी का, प्यारे इस छन्द ने कि छीन लिया होश है।
सफल नहीँ हूँ यदि छन्द लिखने मे कहीँ, लिखूँ कुछ और भाई मुझे परितोष है।
★★★
नेता अब करते हैं अपनी ही स्वार्थ सिद्धि, जनता से नहीं कुछ इन्हें सरोकार है।
लूटने-खसोटने में लगीं हुईं सरकारें, लगता कि इनका तो यही कारोबार है।
हम तो गरीब जन रात-दिन बार बार, डूबते हैं पर नहीं मिले पतवार है।
जितने घोटालेबाज हो गए अमीर सब, जनता पे ज़ुल्म करती ये सरकार है।
★★★
अपने में गुम रहूँ अब गुमसुम रहूँ, किसी को भी खुश क्यों मैं यार नहीं करता।
सच कहते है सभी गलती करूँ मैं रोज, पर एक बार भी स्वीकार नहीँ करता।
यह भी तो सत्य है कि बावला हुआ हूँ अब, सोच व विचार एक बार नहीं करता।
सब है पसंद पर यह मत कहना कि, आदमी हूँ आदमी से प्यार नहीं करता।
★★★
कितने बेचैन होके काम रोज करते हैं, जीने के लिए ही बार बार हाय मरते।
जिन्दगी मिली है सच कहती है दुनिया ये, पर कहाँ पर है तलाश रोज करते।
हमको तो लगता कि दुख ही की दुनिया ये, दुख से ही दुख में ही दुख हम भरते।
इसीलिए दुख के पहाड़ हों या झील कोई, दुखी हम इतने कि दुख सब डरते।

– आकाश महेशपुरी

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