कुछ गम सुलगते है हमारे सीने में।
कुछ गम सुलगते है हमारे सीने में।
दर्द ही दर्द मिले है हमको जीने में।।1।।
ना जाना उनके नशे के होने पर तू।
सुना है राहत मिलती है यूं पीने में।।2।।
मुद्दत हुयी है सुकू से सोया नही हूं।
मां होती सुला लेती अपने सीने से।।3।।
सूखने से पहले दे दो मजदूरी उसे।
आग होती है मजदूर के पसीने में।।4।।
शिकवा नहीं किसी से बर्बादी का।
तजुर्बा ही मिला हमे यूं बिगड़ने में।।5।।
दुआ करदो मेरी खातिर तुम सब।
काश मौत आए मुझको मदीने में।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ