कुछ खाब
कुछ खाब चूमती थी पलकें, कुछ बूंदे मोती सी हो जाती थी
उसको छूकर जब पगली हवा हौले से मुझको छू जाती थी
~ सिद्धार्थ
हॅंस दूॅं क्या … कि सारी बलाएं रफूचक्कर हो जाय
दुखों के पहाड़ से हॅंसीं के फूल का टक्कर हो जाय
~ सिद्धार्थ
सन्नाटे को तकिया धुआं को गिलाफ कर लिया
हमने आज फिर से “जाना” तुझ को मांफ कर दिया
~ सिद्धार्थ