कुछ खत मुहब्बत के
वो खत मुहब्बत के या हृदय का राग कहूँ
सुध -बुध खो बैठी उसे प्रेम की आग कहूँ
प्रथम नैन मिलन में तुम मेरे बन काम गये
अब मन मंदिर में तुम बन कर राम सजे
करूँ याद वो पहला खत जो तुमने लिखा
मन प्रफुल्लित हो प्रेम कमल फिर खिला
आते जाते निगाहें बस तुमको ढूँढ़ा करती
नहीं दिखते तो खत बार -बार पढ़ा करती
तुमने प्रिये लिख कर किया था जो सम्बोधन
बार -बार मन करता सुनूँ मैं वहीं उदबोधन
वो खत मुहब्बत के है प्राणों से भी प्यारे
शब्द – शब्द जिसके है प्रियवर जैसे दुलारे
बीच पन्नों के रखती हूँ छिपा आज भी मैं
दुबके छुपे पढ़ लिया करती हूँ आज भी मैं
जीवन नया पा लेती कर खतों का स्पर्श
खतों के बहाने मिल जाता तुम्हारा संस्पर्श
लम्हें मुहब्बत के याद कर मुस्कान सजती
अंग प्रत्यंगों में में अजब सिंहरन सी जगती
मुहब्बत के जो खत लिखे थे तुमने प्यार से
बस यूँ ही मन बसे रहना माँगती हूँ प्यार से
डॉ मधु त्रिवेदी
आगरा (उत्तर प्रदेश)