कुछ किया जाये ,ग़ज़ल
आज अपने मुकद्दर को फिर बनाया जाये |
किसी गरीब तक निवाला पहुँचाया जाये ||
रियायते मिलती हैं यहाँ सिर्फ अमीरो को ,
सरकार गरीब का कर्जा भी कुछ चुकाया जाये ||
खिलौना खेलने वाला खिलौना बेचता है ।
देश में है विकास ये कैसे समझाया जाये ।।
ठण्ड में बैठते है रजाई में फिर भी कापते हैं हम ,
खुले आसमां के नीचे कैसे लोरी सुनाया जाये ||
नसीब में उसके शायद आंसू के सिवा कुछ भी नही ,
ख़ुशी का एक आंसू उसकी आँखों में लाया जाये ।।
सुमीत श्रीवास्तव ,कानपुर