कुछ किए बिन जगता मुकद्दर कभी।
गज़ब
212…….212…….212……..212
कर्म औ’र भाग्य से बन सिकंदर कभी।
कुछ किए बिन न जगता मुकद्दर कभी।
हौसलों से सभी काम …..मुमकिन हुए,
गर है हिम्मत …तो लांघो समंदर कभी।
धूप बारिश मे तोड़ी ……..गई झोपड़ी,
या खुदा कोई हो घर से …बेघर कभी।
एक भाभी में माँ की झलक देख ले,
लक्ष्मन सा मिले सबको देवर कभी।
भूखे प्यासे पड़े हैं वो ……..लाचार हैं,
दिल दहल जायेगा देखो मंजर कभी।
जाओ गुरुद्वारे श्रद्धा से ….दर्शन करो,
और पाओ गुरू जी का लंगर कभी।
प्यार मुझसे जताकर के धोका दिया,
फिर मिला वो न मुझको सितमगर कभी।
तुम मिले मुझको सारा जहाँ मिल गया,
अब नहीं चाहिए कोई रहबर कभी।
प्रेमी होकर भी मीरा नहीं …बन सका,
इसलिए पा सका मैं न गिरधर कभी।
…….✍️ प्रेमी