” कुछ काम करो “
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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चलो अब कोई नया गीत गुनगुनालूँ
नयी रचनायें नये अंदाज़ में लिखलूँ
कोई तो धुन अनोखी निकले लवों पे
नये संगीत का इतिहास तो लिखलूँ
पुराने गीतों को मत कोसें
संगीतों को सम्मान करो
उनकी आलोचना से क्या
उनको सदा स्वीकार करो
चलो अपने पूर्वजों से कुछ तो सिखलूँ
उनके प्रयासों को सदा कबूल करलूँ
कोई तो धुन अनोखी निकले लवों पे
नये संगीत का इतिहास तो लिखलूँ
मेरा संगीत अच्छा है
पुराने राग बेढब थे
किया है मैंने सबकुछ
वे यहाँ कुछ भी नहीं थे
ऐसी बातें करने से मैं परहेज करलूँ
उनके अथक प्रयासों को नमन करलूँ
कोई तो धुन अनोखी निकले लवों पे
नये संगीत का इतिहास तो लिखलूँ
अपनी कविताओं का नाम
बदल कर महान नहीं बनते
किसी कहानियों के पात्र
बदलने से काम नहीं बनते
मौलिक लिखकर “दिनकर” तो बनलूँ
अच्छे गीत लिखकर“शैलेन्द्र तो बनलूँ
कोई तो धुन अनोखी निकले लवों पे
नये संगीत का इतिहास तो लिखलूँ
देशभक्ति तुम क्या जानो
उनको कभी याद नहीं किया
खुद देश भक्त कहते हो
असली को नहीं सम्मान दिया
उन महान देशभक्तों को याद करलूँ
खुद अपनी प्रशंसा करना थोड़ा छोडलूँ
कोई तो धुन अनोखी निकले लवों पे
नये संगीत का इतिहास तो लिखलूँ
पहले मंहगाई नहीं थी यहाँ
कविता का विषय और था
सबको नौकरियाँ मिलती थी
लेखों में मसला कुछ और था
इन समस्या को थोड़ा स्वीकार करलूँ
खुद कुछ कर ना सके विचार करलूँ
कोई तो धुन अनोखी निकले लवों पे
नये संगीत का इतिहास तो लिखलूँ
चलो अब कोई नया गीत गुनगुनालूँ
नयी रचनायें नये अंदाज़ में लिखलूँ
कोई तो धुन अनोखी निकले लवों पे
नये संगीत का इतिहास तो लिखलूँ !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
31.08.2023