कुछ कहना है
पापा आपसे कुछ कहना है बात सुनेंगे क्या,
कुछ वक़्त चाहिये आपका साथ चलेंगे क्या,
बहुत कुछ कहना चाहती हुँ पर नहीं कह पाती क्यों क्युंकि डरती हुँ आपसे,
बहुत प्यार करती हुँ आपसे पर जता नहीं पाती क्यों क्युंकि डरती हुँ आपसे,
मुझे इतना मजबूर कर दिया इस डर ने,
आपसे बहुत दूर कर दिया इस डर ने,
इस डर की दीवार को हटा लो ना पापा,
एक बार गले से लगालो ना पापा,
एक बार बैठो ना मेरे पास ,
मुझसे बात तो करो पूछो तो,
कि सब कुछ तो है तुम्हारे पास,
फिर क्यों रहता है ये चेहरा उदास,
मै कहूंगी,
की अब तो हर वक़्त आँखों में भी बादल बरसते हैं,
आपके मुँह से ‘बेटा’ सुनने को मेरे कान तरसते हैं,
एक बार फिर से बेटा कहके बुला लो ना पापा,
बस एक बार सिर्फ एक बार गले से लगालो ना पापा.
– वैष्णवी गुप्ता(Vaishu)
कौशांबी