कुछ करा जाये
कहानी ख़त्म न हो तब तक पर्दा न गिराया जाये
आशियाना बिखरने को है इसे पहले सजाया जाये
खबर ऐसी है बिना पैर ख़ुद ही चल के जाएगी
नफ़रत की आग धीरे धीरे लंबा धघकाया जाये
धुँधलका जो नज़र का है दूर तक फैला हुआ
बुझी हुई शमा को उठाओ चलो जलाया जाये
घर न बनाये होते तो ज़मीन पर पेड़ ही उगते
बसें ख़ुद भी और पेड़ों को भी बसाया जाये
डा. राजीव “सागरी”