कुछ ऐसा ही है
समझ नही आता कैसी चली सत्ता की रीत
सुख साधन होकर भी रहना सदा भयभीत।
बनी कमेटियां, बने नियम,होता संशोधित संविधान
पर कहीं न दिखा है अब तक मानव का कल्याण।
भूख अशिक्षा बेकरी ने पंख अभी भी फैलाये हैं
बेफिक्री की चादर ताने रहनुमा सभी अलसाये हैं।
बातों से ही सजता रहा है मेरे भारत का ताज सदा
भय के साये में जी रहे भारत माँ के लाल सदा।
आंकड़ों को देखें तो विकास निरंतर प्रगति पर है
आतंकी अत्याचारी बलात्कारी फूल रहा धरती पर है।
समस्याओं ने जनसंख्या विस्फोट को आधार बनाया है
मशीनीकरण के दौर ने युवा को बेकार बनाया है।
जिस आरक्षण के बाणों से अखंडता घायल हुई है
उन्हीं बाणों की हमारी राजनीति कायल हुई है।
बेटी बचाने पढ़ाने की बात हर मुख से बोली जाती है
पर गर्भ में आते ही वही बेटी बेटे से तोली जाती है।