कुछ उलझी सी जिंदगी
शीर्षक:कुछ उलझी सी जिंदगी
क्या है जिंदगी ..?
क्यो हैं इतनी अजीबोगरीब सी जिंदगी.??
समझ से परे मानव जीवन
कभी न जाने क्यों मिलती हैं अनगिनत खुशियां
न जाने पल में ही क्यो गायब हो दे जाती हैं अनंत दुःख
आखिर क्या है ये सब..?
बस चली जा रही हूँ इन प्रश्नों संग
जीवन की कठिन डगर पर
आखिर कब तक लौट पाऊंगी उस जगह जहाँ
कोई प्रश्न न खड़ा हो मेरे सक्षम
क्या निरुत्तर सा सहज महसूस कर पाऊंगी मैं..?
अपने कर्मो को प्रश्नत्ता से करती हुई आखिर कब..?
हो पाऊंगी उत्तरित सी,स्वयं में सुलझी सी
बाल्यावस्था से जीवन के अंतिम पड़ाव तक यही प्रश्न
आखिर क्यों हैं प्रश्नों में उलझी उलझी ही जिंदगी
न जाने कितने व्यस्त हैं हम अनजाने से कर्मो में
अपना पूर्ण जीवन जीते हैं ..!!
हम क्यों आखिर क्यों..?
एक बोझ सा लिए चले जा रहे हैं अंतिम डगर की ओर
जन्म लेते ही चल देते हैं वापसी की तरफ
और अंत मे सपने को हारा हुआ सा ही पाते है
आखिर क्यों हैं जिंदगी उलझी उलझी सी
अंत मे सब हार चल देते हैं अपनी उसी मंजिल की ओर
अनंत,असीम जीवन को अपने संग लिए
शरीर को छोड़ नव शरीर को पाने
अनंत शरीरों को पूर्ण करते हुए
कुछ उलझी सी जिंदगी संग
बहुत प्रश्न लिए चल रही हैं अनंत जीवन यात्रा पर मंजु
चलना है कब तक ..?और क्यो..?
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद
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