कुछ आदर्श विचार
१.
निंदा करने वाले व्यक्ति का स्वयं का स्वयं के अभिनन्दन
से कोई लेना देना नहीं होता | वह तो केवल दूसरों के
अभिनंदन व सम्मान से स्वयं को बोझिल किये रहता है.
और निंदा: स्तुति को अपनी आवश्यक दिनचर्या मानता है |
२.
नायक बनना उतना कठिन नहीं है जितना उसकी
गरिमा को बनाए रखना | नायक को स्वयं को आदर्शों
एवं नियमों से खुद को बांध लेना चाहिए| ताकि
किसी भी प्रकार के प्रभाव से वह बच सके | और
अपनी जिम्मेदारी का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन कर सके |