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12 Jan 2022 · 1 min read

कुछ आदतों में हम अभी बच्चें है…

कुछ आदतों में हम अभी बच्चें है…
~~°~~°~~°
रेत के घरौंदें बना,
हम ख्वाब बुना करते हैं ।
रेत तो समुन्दर का था, बहा ले गया।
और हम किनारे बैठ रोया करते हैं।
कारवां जिंदगी का,यूँ ही तो गुजर रहा ,
पर छिप-छिप के अश्रु बहा करते हैं।
कुछ आदतों में हम अभी बच्चें है…

हम वक़्त को रोक कर ,
बेवक्त मिला करते हैं ।
हम जिंदगी की छाँव हेतु ,
काग संग काँव-काँव किया करते हैं।
इत्मिनान से इश्क की दरिया में डूबे जो,
इन दिल के रिश्तों में भी, हम अभी कच्चे हैं।
कुछ आदतों में हम अभी बच्चें है…

हमें आदत नहीं है ,
भींगी पलकों संग मुस्कराने की ।
हमें आदत पड़ी है,चोट खाकर चिल्लाने की ,
हमें आदत नहीं है अब,हंसने-हंसाने की ।
हम जीने की साजिश में ,
हर बात पर यूँ ही,गुफ़्तगू किया करते हैं।
कुछ आदतों में हम अभी बच्चें हैं…

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १२ /०१ / २०२२
पौष, शुक्ल पक्ष,दशमी
२०७८, विक्रम सम्वत,बुधवार
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 440 Views
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