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13 Sep 2024 · 1 min read

कुंडलिया

कुंडलिया

माता है वह जगत की, नहीं वस्तु उपभोग।
नारी से संसार है, मानें यह सब लोग।
मानें यह सब लोग, मगर कुछ ज‌न हैं दानव।
मानवता से दूर, नहीं सच्चे वह मानव।
नारी का अपमान, इसी में सुख वह पाता।
देवी कहते जिसे, और हैं कहते माता।।

डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली

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