कुंडलिया
कुंडलिया
जैसी जिसकी सोच हो, वैसा उसका मान।
बुरा बुराई झेलता, नेक सुने गुणगान।।
नेक सुने गुणगान, आजमाकर देखो तुम।
सच्चाई के साथ, झूठ आगे सब हों गुम।।
सुन ‘प्रीतम’ की बात, बना उद्गार हितैषी।
मिले सरिस परिणाम, तबीयत पाई जैसी।।
आर. एस. ‘प्रीतम’