डॉ. कुँअर बेचैन : कुछ यादें
डॉ. कुँअर बेचैन : कुछ यादें
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27 जुलाई 1987 को प्रसिद्ध गीतकार एवं गजलकार श्री कुँअर बेचैन ने अपना नव-प्रकाशित गजल संग्रह रस्सियाँ पानी की मुझे समीक्षा के लिए भेजा। पुस्तक पर लिखा था ” स्नेही बंधु रवि प्रकाश को समीक्षार्थ ” । नीचे श्री कुँअर बेचैन के हस्ताक्षर तथा तिथि हिंदी अंको में 27 जुलाई 1987 अंकित थी । एक पत्र संलग्न था ,जिसमें आग्रह किया गया था कि अगर पुस्तक की समीक्षा 15 अगस्त 1987 के स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में हो जाए तो बहुत अच्छा रहेगा ।
सहकारी युग के संपादक श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी मेरी रुचि को देखते हुए साप्ताहिक पत्र में समीक्षा के लिए आने वाली पुस्तकों को मेरे पास भेज देते थे । मेरी समीक्षाओं को पढ़कर ही श्री कुँअर बेचैन जी को यह लगा कि क्यों न सीधे रवि प्रकाश जी को ही पत्र लिखकर तथा उन्हीं के नाम से पुस्तक को समीक्षा हेतु भेज दिया जाए । पत्र के साथ पुस्तक मुझे प्राप्त हुई और बेहद अच्छा लगा यह देख कर कि काव्य जगत के शीर्ष हस्ताक्षर ने मेरी समीक्षा को इस योग्य समझा कि मुझे पुस्तक भेजी जा सके ।
खैर मैंने पूरी मेहनत करके पुस्तक को पढ़ा । उसको समझने का प्रयत्न किया और समीक्षा लिख डाली । सौभाग्य देखिए ! कुँअर बेचैन जी को वह समीक्षा बहुत पसंद आई और उन्होंने मुझे एक धन्यवाद पत्र भी लिख डाला ।
1983 में जब से मैंने सहकारी युग ( हिंदी साप्ताहिक ) रामपुर ,उत्तर प्रदेश में कहानी कविताएं लेख हास्य व्यंग्य आदि लिखना आरंभ किया ,कुँअर बेचैन जी को विशेषांकों में निरंतर पढ़ने को मिलता रहा । रामपुर में आपका शुभागमन कवि सम्मेलन के मंचों पर भी हुआ और साक्षात आपके श्रीमुख से गीत-गजल आदि सुनने का अवसर मिला । आप साधु स्वभाव के व्यक्ति रहे । घमंड आपको छू भी नहीं गया था ।
संभवत 1984 में बृजघाट पर गंगा-स्नान करते समय मुझे और श्री महेंद्र जी को कुँअर बेचैन जी दिख गए थे । झटपट आपसे नमस्ते हुई और वातावरण सुखद तरंगों से भर उठा । आप का काव्य-पाठ गंभीरता लिए हुए रहता था । मंच को जिन प्रतिभाशाली कवियों ने मर्यादा की ऊँचाइयों तक पहुंचाया ,काव्य को श्रेष्ठ मापदंड प्रदान किए तथा श्रोताओं को कवि-सम्मेलन के माध्यम से पत्रिका के एक संपूर्ण अंक के अध्ययन की सुखानुभूति प्रदान की ,ऐसे काव्य-शिल्पियों में श्री कुँअर बेचैन अग्रणी थे । आपने सामयिक घटना-चक्र पर अपनी लेखनी चलाई लेकिन सीधे-सीधे न कह कर कुछ वक्रता लिए हुए आपका वक्तव्य रहता था । 1984 के आसपास की लिखित आप की दो पंक्तियाँ मुझे याद आती हैं :-
छत की ईटें ही अगर बारूद से मिल जाएँगी
तो यकीनन घर की नीवें दूर तक हिल जाएँगी
1988 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “गीता विचार” के दूसरे अध्याय में मैंने श्री कुँअर बेचैन का एक शेर उद्धृत किया था:-
एक या दो की नहीं ,है यह कई जन्मों की बात
एक पुस्तक थी “कवर” जिस पर नए चढ़ते रहे
श्री कुँअर बेचैन के उपरोक्त शेर का उपयोग मैंने शरीर की नश्वरता तथा आत्मा की अमरता को दर्शाने के लिए किया था।
अच्छे शेर हमेशा और हर जगह उपयोग में आते रहते हैं । कुँअर बेचैन ने जो लिखा , उसका स्मरण सदैव उनके पाठकों के हृदयों में उपस्थित रहेगा। स्मृतिशेष श्री कुँअर बेचैन की पावन स्मृति को शत-शत नमन ।
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सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक) रामपुर, उत्तर प्रदेश अंक 15 अगस्त 1987 में प्रकाशित
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पुस्तक समीक्षा : रस्सियाँ पानी की(गजल संग्रह) : कुँअर बेचैन
प्रकाशक : प्रगीत प्रकाशन 2 एफ-51 नेहरु नगर, गाजियाबाद ( उ० प्र० ), प्रथम संस्करण 1987 मूल्य 25 रुपए,प्रष्ठ संख्या 128
समीक्षक :रवि प्रकाश
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कुँअर बेचैन का नवीनतम गजल संग्रह “रस्सियाँ पानी की ” मेरे सम्मुख है। इसमें अस्सी गजलें हैं जिसमें उनकी 1983 से जनवरी सन् 1987 तक की लिखी हुई गजलें शामिल हैं। अस्सी गजलें इस पुस्तक में कुँअर बेचेन ने कहीं है- पुस्तक का महत्व इतना ही नहीं है । पुस्तक को अत्यन्त महत्वपूर्ण बना रहा है, बीस पृष्ठों का वह विस्तृत स्वतन्त्र लेख जिससे पता चलता है कि गजलकार ने गजल को कहने के साथ- साथ कितनी गहराई से समझा है गजल की विधा को और पाठकों को समझाया है। एक शिक्षक की शैली में कुँअर बेचैन ने पुस्तक के गजल संरचना खण्ड में गजल की बहरों पर गम्भीर खोजपूर्ण जानकारी पाठकों को दी है। कठिन परिश्रम से लेखक ने उर्दू गजल की बहरों के अरबी नामों का हिन्दी नामकरण किया है। नामकरण -जो हर बहर के हृदय-भाव को समझने के बाद ही किया गया है। केवल इतना ही नहीं अपितु हर उर्दू रूक्न को नए सिरे से हिन्दी में समझाने के लिए उसके पृथक-पृथक हिन्दी पदों का मात्राओं के लिहाज से आविष्कार किया है। विद्वान लेखक ने मात्राओं के आधार पर गजल की बहरों को हिन्दी में प्रस्तुत करने के लिए संस्कृत के प्राचीन दशाक्षरी सूत्र “यमाता राजभान सलगा'” का प्रयोग किया है। लेखक के इस परिश्रम से उर्दू गजल का शास्त्रीय पक्ष हिन्दी जगत के निकट आया है और बहर को समझना सरल हो गया है। आज जब गजल हिन्दी में भरपूर कही जा रही है, कुँअर बेचैन जैसे समर्पित साधकों का गजल संरचना पक्ष पर हिन्दी दृष्टि से यह कार्य हिन्दी और गजल दोनों की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला महान कार्य है। कुँअर बेचैन ने गहन शोध से यह भी सिद्ध किया है कि उर्दू को अनेक बहरें, हिन्दी-संस्कृत के प्राचीन छन्दों का ही नया रूप हैं। संस्कृत के ‘भुजंगप्रयात’ और ‘वाण’ नामक छंद में लेखक ने बहरे मुतकारिब (मिलन छन्द) के दर्शन किए हैं। यही नहीं, संस्कृत हिन्दी के शक्ति छन्द, विजातक छन्द, सुमेरू छन्द, दिगपाल छन्द आदि को लेखक ने अपने श्रमसाध्य अध्ययन से विविध उर्दू बहरों के समकक्ष रखने के निष्कर्ष प्रतिपादित किए हैं। निश्चय ही साधुवाद के पात्र हैं विद्वान लेखक, अभिनन्दनीय है उनका परिश्रम और वन्दनीय है गजल की आत्मा को समझने-समझाने की उनकी लगन ।
कुँअर बेचैन ने सप्रयास अथवा अनायास अपनी गजलें बहरे रमल (बिन्दु अंकन छंद) में अधिक कहीं है। आलोच्य पुस्तक में ही ८० में से ५१ यानि लगभग दो तिहाई गजलें बहरे रमल में हैं। बहरे रमल के विषय में उन्होंने लिखा है कि “रमल शब्द अरबी भाषा का है । इस शब्द का अर्थ उस विधा से है जिससे भविष्य में होने वाली घटनायें बता दी जाती हैं। इस विधा का मूल आधार नुक्ते (बिन्दियाँ) हैं । इसी अर्थ के आधार पर हम इसे बिन्दु अंकन छंद नाम दे रहे हैं। इस बहर के विषय प्रेरणात्मक भी हो सकते हैं तथा उपदेशात्मक भी ।” (पृष्ठ 109) अगर उपरोक्त व्याख्या को सही मानें तो कुँअर बेचैन को मुख्यत: प्रेरणात्मक या उपदेशात्मक गजलें कहने वाला मानना चाहिए । पर, समीक्षक को नहीं लगता कि कोई बहर किसी विशिष्ट विचार, भाव या रस- संप्रेषण में बंधी हैं। संभवतः हर बहर में समयानुकूल अथवा गजलकार के अनुकूल बात कही जा सकती है। बहरे रजज (वंश गौरव छद) का केन्द्र बिन्दु युद्ध क्षेत्र में अपने कुल की शूरता और श्रेष्ठता का वर्णन कहा जाता है । मगर क्या इस बहर में भ्रष्टाचार के विरोध,सांप्रदायिकता के अन्त और प्रेमिका से प्यार की बातें नहीं की जा सकतीं ? यह भी आखिर वंश गौरव छंद है –
मैं तेरी जिस किताब में खत-सा रखा रहा
तूने उसी किताब को खोला नहीं कभी (पृष्ठ 30)
बहरे मुतकारिब (मिलन छंद) पर अपनी टीका में विद्वान लेखक ने लिखा हैं ‘”इस छन्द में प्राय: जंग (युद्ध) या सुलतान की मसनवी कही जाती है। किन्तु मीरहसन ने ‘मसनबी रुहरुलव्यान लिखकर यह सिद्ध कर दिया कि इस बहर में श्रंगार की कविता भी लिखी जा सकती है ।” (पृष्ठ 104) किन्तु उपरोक्त बहर को छोड़कर अन्य किसी स्तर पर बहरों के विषय के सन्दर्भ में लेखक की कोई टिप्पणी उपलब्ध नहीं है। जब बहरे रमल (बिन्दु अंकन छन्द) के अन्तर्गत वह कहते हैं –
हो के मायूस न यूँ शाम – से ढलते रहिए
जिन्दगी भोर है सूरज – से निकलते रहिए (पृष्ठ 88)
उपरोक्त पंक्तियाँ तो विशुद्ध रूप से प्रेरणात्मक तथा उपदेशात्मक के कोष्ठक में फिट हो जाती हैं, मगर निम्न पंक्तियों में वह उपदेशात्मक या प्रेरणात्मक कहाँ हैं ?
हम तेरे घर को नयन समझे, यही एक भूल की
वर्ना आंसू बन के तेरे द्वार तक आते नहीं (पृष्ठ 21)
कुँअर बेचैन राष्ट्रीय ख्याति के गजलकार हैं। उनकी अस्सी गजलें एक साथ पढ़ना मेरे लिए सुखद अनुभूति रही । उनकी गजलों के बारे में उन्हीं के शब्दों का आश्रय लेकर कहूंगा, “गजल लोरी भी है, जागरण-गीत भी। एक ही समय में दोनों। (एक ही संग्रह में दोनों -समीक्षक) लोरी उन्हें जो थके-मांदे हैं। जागरण उन्हें, जिन्हें काम पर निकलता है ।” (पृष्ठ 12)
देश, धर्म और समाज को जगाती कुँअर बेचैन की गजल के निम्न शेर अलसायी आँखों पर पड़ते पानी के छीटों की तरह जान पड़ते हैं :-
रात की कालिख बिखरती है सुबह के वक्त भी
बोल सूरज, तेरी किरणों की बुहारी अब कहाँ
और
कितनी खामोशी से हमसे पूछती हैं घंटियाँ
देवता, मन्दिर वो मन्दिर के पुजारी अब कहाँ (पृष्ठ 35)
निम्न गजल को लिखे हुए (25 मार्च 1984) तीन साल से ज्यादा हो गये मगर कुँअर बेचैन अब भी जब कभी इसे कवि सम्मेलनों में गाते हैं तो लगता है कि अपनी बीती रात के ताजा सन्दर्भों पर बात कर रहे हैं :-
छत की ईंटे ही अगर बारूद से मिल जायेंगी
तो यकीनन घर की नीवें दूर तक हिल जायेंगी (पृष्ठ 27)
स्मरणीय है कि बारूद और तोप का निकट का सम्बन्ध होता है। आज की राजनीतिक कायरतापूर्ण, नपुंसक मानसिकता की स्थिति पर कितना मुखर हो रहा है गजल का यह शेर :-
चुप रहे, चुप ही रहे, चुप ही लगातार रहे
बुत-तराशों से तो पत्थर ही समझदार रहे (पृष्ठ ८१)
व्यक्ति को निष्पक्षता उसके ऊंचा उठने में प्रायः बाधक बन जाती है। सत्ता को चापलूस ही पसन्द आते हैं । सारी सुविधायें उन्हीं के लिए हैं। दर्शाता है यह शेर-
उनका यह हुक्म है कि मैं आकाश तक उडूँ
पर शर्त यह है कि इक तरफ का पर कटा रहे (पृष्ठ 59)
अभिव्यक्ति जब बन्द कमरे में घुट जाती है तो क्रान्ति जन्म लेती है। परिवर्तन और सुधार के रास्ते बन्द हो जाते हैं तो विस्फोट अनिवार्यता बन जाती है। किसी ईमानदार और सही सोचने वाले व्यक्ति की ईमान की आवाज की मजबूरी को कुँअर बेचैन ने बहुत सशक्त अभिव्यक्ति दी है। क्या पाठकों को नहीं लगेगा कि नीचे लिखा शेर हमारे आस-पास के सबसे ज्वलन्त सन्दर्भ पर सर्वाधिक मुखर टिप्पणी है । जब-जब बेईमानो से भरे लोहे के कचरा-डिब्बे में पलीता लगाने वाला कोई ईमानदार विस्फोट होगा, उस क्रान्तिधर्मी की तरफ से कुँअर बेचैन की निम्न पंक्तियाँ गुनगुनाने को जी चाहेगा—
न खिड़की थी न दरवाजे मैं करता भी तो क्या करता
मुझे हर हाल में दीवार से होकर निकलना था (पृष्ठ 66)
कुँअर बेचैन की गजलों में राजनीति सीधे-सीधे बिल्कुल नहीं मिलेगी । गजलों की बगिया में राजनीति नाम के अस्पष्ट फूल ही तलाशने वाले को कुँअर बेचैन को पढ़कर शायद निराश होना पड़े। पर हममें से बहुतेरे पाठकों को उनकी गजलों में समय के सर्वाधिक ताजा राजनीतिक तेवर सदा दीखेंगे। कारण, कुँअर बेचैन फूल पर नहीं, उसकी सुरुभि पर गजल कहते हैं।
राजनीति पर अपनी विचित्र खामोश टिप्पणी करने वाले कुँअर का कलमकार एक गहरी उदासी की गजलें कहता रहा है। यह कुँअर प्रेम में हारा, थका है और स्मृतियों की टूटन उसके दिल में बसी है । हताश और निराश प्रेमी के दिल के टूटने और चटकने की व्यथा को स्वर देते उनके कई शेर हैं। उदाहरणार्थ-
एक टूटे दिल ने आहें भरते दिल से यह कहा
टूटने का डर ही था तो प्यार तक आते नहीं (पृष्ठ 21) और
ऐ कुँअर दिल तेरा दर्पन – सा चमक जाएगा
उसकी यादों के अगर बिम्ब हिले पानी में (पृष्ठ 23)
किस हद तक भोलेपन और सादगी से गजलकार प्यार करने वाले की मनः स्थिति को चित्रित कर सकता है, इसका एक नमूना प्रस्तुत करने के लिए कुँअर बेचैन की निम्न पंक्तियाँ पर्याप्त हैं-
जब से मैं गिनने लगा इन पर तेरे आने के दिन
बस, तभी से मुझ को अपनी उँगलियाँ अच्छी लगीं (पृष्ठ 54)
मगर, खुशी का इन्तजार करने व जीने का चित्र खींचने से कुँअर वेचैन की तस्वीर नहीं बनतो | कुँअर की गजलें प्राय: हर पृष्ठ पर सुख-कथा नहीं, बेचैन-व्यथा कहती हैं । देखिए :-
मैंने क्या सोच के मुस्कान को अपना माना
जब भी देखा तो मेरा अश्क ही अपना निकला( पृष्ठ 62 )
पुस्तक में एक शेर जो मैने पढ़ा तो ठिठक गया। आत्मा द्वारा देह का चोला बदलने और पुनर्जन्म की व्याख्या करने में बिल्कुल नई तरह से प्रतीक प्रयोग द्वारा बात कहने में समर्थ लगा यह शेर :-
एक या दो की नहीं, है ये कई जन्मों की बात
एक पुस्तक थी ‘कवर’ जिस पर नये चढ़ते रहे (पृष्ठ 82)
कुँअर बेचैन अलग से धार्मिक शेर नहीं लिख रहे, दरअसल आध्यात्मिकता का मर्म उनकी गजलों में प्रायः रचा – बसा है। सम्भवतः यह सच है कि गजल उनकी प्रेमिका ही नहीं, परमसत्ता भी है ।
जो बात कुँअर बेचैन को अन्य गजलकारों से अलग करती है, वह है उनके बिम्ब – प्रयोग की विराट अभिव्यक्ति क्षमता । ये गहराई लिए हुए हैं और समय के साथ-साथ इनके व्यापक अर्थ निकलते हैं । कुँअर बेचैन के अधिसंख्य शेर किसी खास कोष्ठक में अर्थ की दृष्टि से सीमित नहीं किए जा सकते। पाठक जिस दृष्टि से और जितनी बार उन्हें पढ़ेगा,नए-नए अर्थ निकलेंगे। आखिर में फिर उनका एक शेर :-
दिल तो आँगन है प्यार के घर का
कोई दीवार क्यों उठाते हो ? ( पृष्ठ ३८) क्या कर सकेंगे इनकी अन्तिम व्याख्या और बता सकेंगे दूसरा अन्तिम मतलब ?
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आदरणीय डॉक्टर कुॅंअर बेचैन जी का पत्र इस प्रकार है:-
2 एफ 51 नेहरू नगर, गाजियाबाद 201001
फोन 849331
दिनांक 27 -7 -87
स्नेही बंधु नमस्कार
यह आपका सहज और आत्मिक स्नेह ही है कि आप हमेशा मुझे विभिन्न राष्ट्रीय पर्वों पर याद कर लेते हैं और मुझे सहकारी युग के माध्यम से पाठकों तक पहुंचने का सौभाग्य प्रदान करते हैं। सहकारी युग अन्य सभी पाठकों की तरह मेरी भी आवश्यकता बन गया है। सहकारी युग पढ़कर मैं गौरवान्वित होता हूं। आपके परिश्रम और लगन का प्रतिफल ही है यह पत्र। बधाइयां। दो गीत भेज रहा हूं। जो अच्छा लगे, छाप दें। पिताजी को नमस्कार कहना। परिवार में सभी को यथायोग्य।
स्नेहाधीन
कुॅंअर
पुनश्च
अभी एक ग़ज़ल संग्रह “रस्सियॉं पानी की” नाम से प्रकाशित हुआ है जिसमें 80 गजलों के अलावा पीछे बीस प्रष्ठों में ग़ज़ल की बहरों (छंदो) पर विशद लेख है। जिसमें उर्दू की बहरों के नए हिंदी नाम दिए हैं और हिंदी पद्धति से उनके नए सूत्र भी बनाए हैं। 600 घंटों के परिश्रम से 20 पृष्ठ लिखे गए हैं। यदि 15 अगस्त के अंक में ही इसकी समीक्षा दे दें तो प्रसन्नता होगी।
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समीक्षा पर आदरणीय श्री कुँअर बेचैन जी की सुंदर प्रतिक्रिया भी पोस्टकार्ड के माध्यम से प्राप्त हुई थी ,जो इस प्रकार है:-
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फोन 8-712958
12.9.91
2 एफ – 51 नेहरु नगर, गाजियाबाद, उ.प्र.
स्नेही भाई रवि प्रकाश जी
सप्रेम नमस्कार
आपका स्नेह-पत्र एवं सारगर्भित पुस्तक-समीक्षा ( रस्सियाँ पानी की ) प्राप्त हुई। समीक्षा पढ़कर आपके भीतर के कुशल समीक्षक के दर्शन हुए। आपमें गहरी दृष्टि एवं गहन विचार की अद्भुत क्षमता है। मेरी बधाई स्वीकार करें | मेरे लेखन पर आपकी स्नेहपूर्ण टिप्पणी सचमुच बहुत महत्वपूर्ण है। मै शीतल को यह समीक्षा फोटोस्टेट करा के दे दूँगा | निश्चय ही उन्हें अपने शोध प्रबंध में यह समीक्षा बहुत उपयोगी होगी ।
आपने यह समीक्षा लिखकर भेजी ,इसके लिए किन शब्दों में धन्यवाद दूँ।
आदरणीय महेन्द्र जी को एवं समस्त परिवार को यथा-योग्य |
आपका
कुँअर बेचैन
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451