कीमत
सुना है इश्क़ पर,ज़ालिम किसी का वश नही चलता।
मेरा महबूब है रूठा, तरफ़दार नहीं मिलता।
ये दुनिया ये रिश्ते,सब झूठे हैं,
है बिकने को तैयार, कोई ख़रीददार नहीं मिलता।
किसी की याद में, इतना न खो जाना।
मिले गर जगह ,तो घर मत बनाना।
होकर मज़बूर मैं चला था,अनजान राहों पर।
खड़ा होता तो कोई, मोटर कार न मिलता।
फ़लक़ में देखता हूँ जब मैं,
कोई चेहरा नज़र आता।
अक़ीदा से सुनाता मैं ,हाल-ए-ख़बर दिल का
पता चलता यहां कोई ,समझदार नही मिलता।
लिखा था ,जो मुक़द्दर में ,उसे
मिटा क्यूँ न दूँ मैं।
कहो तो ,चांद-तारों को भी, खिसका क्यूँ न दूँ मैं।
ये ज़मी ,ये आसमां सब ,कतार में खड़े हैं
मिला कर एक कर देता, गर कोई जोड़दार जो मिलता।