किस पथ पर उसको जाना था
भूल गयी वो अपनी मंजिल
किस पथ पर उसको जाना था
शोर भरे सन्नाटों में ना जाने
कब उसको खो जाना था
तलाश रही आज वो अपनी वजूद
किस पथ पर उसको जाना था।
थम गई साँसों की डोर
धड़कन में मची थी शोर
चांद की ओर चकोर वो देखती
देख फिर मन में मुस्काती
मृग तृष्णा से भरी जिंदगी
क्षणभंगुर छलावा था
भूल गयी वो अपनी मंजिल
किस पथ पर उसको जाना था
मन मस्तिष्क में युद्ध छिड़ा
मन कुछ यूँ बेसहारा था
गिरता संभलता फिर खड़ा होता
किस पथ पर उसको जाना था
ममता रानी