“किस किस को वोट दूं।”
“किस किस को वोट दूं।”
आया दौर चुनावों का, खड़े हुए उम्मीदवार।
कोई है, पढ़ा लिखा तो, कोई अनपढ़ गंवार।
कोई पिलाता दारू,
कोई जाता द्वार द्वार।
पता नहीं कौन हारे, किसका हो सपना साकार।
किसी ने बांटे नुक्ती लड्डू,
किसी ने बांटे रसगुल्ले।
किसी ने कुछ न बांटा, सुनाये खूब हंसगुल्ले।
इलेक्शन आए प्रधानी के,
शराबियों की आ गई मौज।
जो ना पीता बूझ नहीं, पीने वाले को पिलाते रोज।
छोटा सा एक गांव है,
कई हैं, उम्मीदवार।
किसको दूं मैं वोट, किसको दूं में चोट।
कोई पैरों में पड़ता,
कोई हाथों को मलता।
कोई छोटे को सलाम करें,
कोई रुपयों की बरसात करें।
चापलूसी करें, चरणों पड़े,
एक माह तक सब कुछ करें।
पड़ोसी भी कम नहीं,
एक दूसरे के कान भरें।
ऐसा भी अब क्या करें, वोट के लिए हां करें।
जीत जाए गर कोई इनमें,
पीछे पांच साल फिरे।
दूं भी तो किसे दूं वोट,
किस किस की खोट करूं।
किस-किस के नोट धरूं,
किस-किस से ओट करूं।
किसने क्या बांटा, क्या किया?
किस किसको नोट करूं।
दुष्यन्त कुमार अपनी इस कृति को,
कितना और शार्ट करूं।।