किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर अनुक्रमांक–04(ख)
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर
अनुक्रमांक–04(ख)
टेक–विष देदे विश्वास नहीं दे धोखा करणा बात बुरी सै।
चौड़े मै मरवा दे लोगो कपटी की मुलाकात बुरी सै।।
१-वीरों के दिल हिल सकते ना,पुष्प झड़े हुए खिल सकते ना,
चकवा चकवी मिल सकते ना,उनके हक मैं रात बुरी सै।
2-बरखा बरसै लगै चौमासा,चातक नै स्वाति की आशा,
बढ़ै घास और जळै जवासा,उसके लिए बरसात बुरी सै!
३-पापी पीपळ बड़ नै काटै,दया धर्म की लड़ नै काटै,
प्यारा बण के जड़ नै काटै,मित्र के संग घात बुरी सै
४-दिल खुश हो सुण प्रिये वाणी को,मुर्ख समझै ना लाभ हाणी को,
हंस अलग करै पय पाणी को,काग कुटिल की जात बुरी सै
५-सतपुरुषों कै भ्रम नहीं हो,बे शर्मों कै शर्म नहीं हो,
जहाँ इंसाफ व धर्म नहीं हो,नंदलाल कहै पंचयात बुरी सै।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)