किस्सा–चन्द्रहास अनुक्रम–22
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चन्द्रहास
अनुक्रम–22
वार्ता–विषिया श्रृंगार करके महल के छज्जे पर खड़ी होती है,और चंद्रहास के आने का इन्तजार करती है।उसके रूप शौंदर्य का वर्णन कवि ने किया है।
टेक-करकैं नै श्रृंगार नार,हार गळ डार,भरी मांग को सुधार,
बाहर छ्ज्जे पै खड़ी।
१-लख केश शेष छुपै भय से,कवि छवि कह सकते कैसे,
जैसे खिली हुयी धूप,सुन्दर रूप था अनूप,देखणीये हुये बेकूप,चूंप दशन मैं जड़ी।
२-भेष देख सकुचावै शची,गोल कपोल भृकुटी खंची,
रची अधरों पै लाली,गोल पूतली थी काली,मतवाली आली चाली,ठाली विधि नैं घड़ी।
३-चितवन मन दृग असि,जैसे सुर पुर मैं उर्वशी,
एक बै हंसी मंद मंद,देख कैं आवै था आनंद,अरविंद पै मकरंद,गंध पुष्प की हड़ी।
४-जो जन चरण शरण मैं रहते,जपते जाप ताप ना दहते,
गुरु कहते सर्वहाल, तत्काल नयी चाल, नंदलाल देते डाल, सुर ताल की झड़ी।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)