किस्सा–चंद्रहास अनुक्रम–18
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रहास
अनुक्रम–18
वार्ता–जब चंद्रहास सो कर उठता है तो वह मदन कंवर से मिलने के लिए महल कि तरफ चल पड़ता है। रास्ते में विषया कि सखी सहेली चंद्रहास से मजाक करती हैं,और उसको अपने घर आने का निमंत्रण देती हैं।
टेक-आइये हो बटेऊ म्हारे घरां आइये हो,
बिना मिले फेटे मतना चाल्या जाइये हो।
१-बिछवा दयांगी चोपड़ स्यार,बाजी ला जाइये दो च्यार,
हाम करां रसोई त्यार,हाथ म्हारे तैं खाइये हो।
२-एक बढ़िया सी धजा टंगवा दयांगी,तूं कहगा उसी रंगवा दयांगी,
वाये चीज मंगवा दयांगी,तनै जुणसी चाहिये हो।
३-सखी सहेली मिलकैं सारी,तेरी कर दयांगी खातिरदारी,
तूं बात मान ले म्हारी,इतणा कहण पूगाइये हो।
४-केशोराम अगम का ख्याल,छंद कथैं कुंदनलाल तत्काल,
पात्थरआळी तैं नंदलाल,नैं सागै ल्याइये हो।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)