किस्सा ए कामवाली ( हाउस मेड) {हास्य व्यंग कविता}
जब ना आये वोह काम पर ,
तो हम पर आ जाती आफत।
मगर जब आ जाये वो तो ,
चेहरे की बढ़ जाती है रौनक।
वोह समझती है की मैडम का ,
हाल बहुत अच्छा है।
उसे क्या पता की उसके ,
आने से पहले हमने उसे कोसा है..
” अभी तक नहीं आई ,
कही छुट्टी करने की नियत तो नही ।
क्या वह खुद बीमार हो गई ,
या कोई समस्या तो नही ।
समस्या चाहे कोई हो ,
इनके लिए नई है क्या ?
इनके पास तैयार रहती हैं,कहानियां,
आज कोई नई कहानी है क्या ?
कहानी होती है इनकी ,
कुछ अपनी कुछ पराई ।
कभी पड़ोसियों से अनबन ,
तो कभी घरेलू लड़ाई ।
बस ! तो फिर आंखों में आसूं लाकर ,
सूजा हुआ मुंह दिखाकर ।
उस पर उदासी की चादर ओढ़े,
काम से लाचारी दिखाकर।
देखकर उसकी दीन हीन अवस्था,
मुंह से निकलता है “बेचारी ” ,
उसे कुर्सी पर बैठा के की जाती है,
आव भगत सारी ।
पहले तो जरूरत ,
फिर आदत बन जाती है ।
यह मेहरिया हमारी कमजोरियां,
खूब पहचानती है।
इन्हें मालिको की नब्ज ,
पहचानना खूब आता है।
कैसे जीते इनका दिल ,
सहानुभूति लेना खूब आता है ।
सच मानो तो यह हमसे ज़ायदा,
होती है दुनियादारी में निपुण।
है तो वो अंगूठा -छाप मगर ,
सामान्य ज्ञान और शहर की खबरों ,
होती है सदा परिपूर्ण।
इनके आने से घर की ,
कायापलट हो जाये।
जो काम लगते थे भारी ,
वह एक क्षणमें निपट जाये।
वह ना आये तो एक मेहमान भी,
मुसीबत लगता है।
और यदि वह हो घर में मौजूद,
चाहे १० आ जाए ,
कोई फर्क नहीं पड़ता है।
वह चाहे जैसी भी हो ,
हमारे मन को भाये।
हम पर चाहे जो गुज़रे ,
मगर उसपर कोई आंच ना आये ,
यही दुआ करता है हमेशा दिल,
क्योंकि वो ठीक तो हम भी ठीक ।
वो बीमार तो हम भी बीमार ,
फिर हम कहां से रह पाए ठीक ।
यह है घर घर की कहानी ,
शायद आपको पसंद आए ।
हो सकती है आपकी भी आप बीती ,
गर आपको मन भाए ।