किसे फर्क पड़ता है।(कविता)
किसे फर्क पड़ता है
बचपन खिलोने खेल के बीता
या ढाबे पर छोटु की पुकार संग
****
किसे फर्क पड़ता है
तुम कार में स्कूल गए
या नंगे पांव पास के गांव
****
किसे फर्क पड़ता है
खाने के लिए जीये
या जीने के लिए खाया
*****
किसे फर्क पड़ता है
तुम्हारा आचरण दूध धुला है
या गंगाजल धुला
*****
किसे फर्क पड़ता है
तुम्हारी ये सांस
आखिरी है या प्रथम
*****
किसे फर्क पड़ता है
तारा टूट जाने पर
किसने क्या मांगा
*****
किसे फर्क पड़ता है
कीड़े मकोड़े, केंचुए के कुचले जाने पर
उन्हें दर्द हुआ के नहीं
*****
किसे फर्क पड़ता है
आपके लिए किस मायने में
क्या सही है क्या गलत
*****
किसे फर्क पड़ता है
हर बात में
ये जानना जरुरी भी नहीं
*****
फर्क पड़ता है तो इसमें कि तुम……
कितनों का विश्वास निश्चिंतता लाए
या कितनों का सुकून चैन रातों की नींद।
संगीता बैनीवाल