किसी सहरा में तो इक फूल है खिलना बहुत मुश्किल
किसी सहरा में तो इक फूल है खिलना बहुत मुश्किल
इबादत के बिना तुझको ख़ुदा मिलना बहुत मुश्किल
निकलता तो है मशरिक़ से ही मग़रिब के लिए ही वो
मगर सूरज का मंसब से तो है हिलना बहुत मुश्किल
जिसे बिछड़े हुए मुझसे तो मुद्दत हो गई है अब
किसी अनजान रस्ते में तो है मिलना बहुत मुश्किल
हवा की है चराग़ों से बड़ी गहरी यहाँ रंजिश
कभी भी आग में पानी का है मिलना बहुत मुश्किल
~अंसार एटवी