किसी नजर को तेरी तलाश है
किसी नजर को तेरी तलाश है
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किसी नजर को तेरी तलाश हैँ,
न जो दिखे मन रहता उदास है।
मिलो कभी आकर देख माजरा,
हुआ असर दिल भी निराश है।
कहूँ उसे मै दिल से मिले कहीं,
गले लगे तो होती खराश है।
हमें अभी भी वो तो अजीज है,
हुई उमर जो बेशक पच्चास है।
उड़ा-उड़ा सा मुख दिखाई है दे,
सफेद दिखती जैसे कपास है।
लगी तड़फ मनसीरत नसीब है।
कहीं उन्हें खोने का हरास है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)