किसी के यूँ बदल जाने से
उदासी कम नहीं होती किसी के बहलाने से
टूटता है कुछ अंदर से,
यूँ उसके बिना बात किये जाने से
अक्सर यूँ होता, वो करता मन आहत ,
दिल धड़क के कहता “ मत ले दिल पे , जाने दे,
शायद यही तो है चाहत,
दिल डूबा रहा उसके लफ्जों की चाशनी में
वो भी मशगूल रहा वरगलाने में,
रौशनी के चिराग जगते बुझते रहे वीराने में
अक्ल का दामन दिमाग से छूटा,
उलझते रहे गलतफहमी के शाम्याने से,
इंकार करता रहा जहन,
उसके बदल जाने से ,
पर सच्चाइयाँ कहाँ बदली दिल को भरमाने से ,
हाँ, उदासी कहाँ कम होती है किसी के बहलाने से,
किसी के यूँ बदल जाने से !