किसान
उड़ाते है मखौल बुजदिली का मेरी…
ये जो तमाशबीन बने बैठे है सियासत में तेरी..
कायर तो नहीं हूं…पर मजबूरियों से थक चुका हूं…
अपनी टूटी उम्मीदें इन बाजारों में रख चुका हूं..
चाहता तो नहीं हूं ये गुनाह करना…
ए खेतों की मिट्टी मेरी..मुझे माफ़ करना….
अपनी छोटी सी लाडो को अनाथ करने जा रहा हूं…
सुन सको तो तुम्हीं सुनो ए देशभक्तों!!!!!
तुम्हारे देश का किसान हूं..#मरने जा रहा हूं……..
सालों की मेहनत भी फल नहीं रही थी…
मुन्ने की भी सायकिल चल नहीं रही थी..
लाडो की मां की तबीयत सुधरी नहीं…
कर्ज लेने की जुर्रत भी अब खत्म हो चली थी…
अपनी इस कायरदिली पर शर्मिंदगी तो है बहुत…
पर उम्मीद की किरण भी कोई जल नही रही थी…
ख्वाबो के टूटे मकान जैसे खुशियां रूठ गई..
जबसे बड़की लाडो की “लगुन” टूट गई.
घर में मने दीवाली मानो सादिया बीत गई
अम्मा के गहने जेवर क्या गए..लक्ष्मी रीत गई
कुदरत भी ढा कहर गया…तो कसर कोई ना बाकी है…मेहनत का जो हष्र हुआ ..अब असर ना कोई बाकी है…
अब जो फिर रूठे बदला तो फ़िर सहना ना हो पाएगा…
लेनदारों के ताने सुन कुछ कहना ना हो पाएगा…
अब बस!!!
अब बस!!
इन सिलसिले को खतम करने जा रहा हूं…
अपनी नाकामी को कब्रो में दफन करने जा रहा हूं…
सुन सको तो तुम्हीं सुनो ए देशभक्तों!!!
तुम्हारे देश का किसान हूं मरने जा रहा हूं…..
ये बाबुओं की नीतियां मेरी समझ नही आती ..
सुना है सरकार मदद तो करती है…पर मेरे घर नहीं जाती!!!
सुना है आवाज उठाने को मेरी
..दूध टमाटर बहाए गए है सड़कों पर..कोई बताए इन्हे घर मेरे..२ वक़्त की रोटी नहीं जाती….
समय के कालचक्र में मै फसा जा रहा हूं
कर्ज में पैदा हुआ;जिया अब कर्ज में ही मरा जा रहा हूं।।।
होंगे तमाशे मौत पे मेरी..कुछ कसीदे गड़े जाएंगे…
कुछ और आंकड़े ..कुछ और भाषड लाश पे मेरी दिए जाएंगे…
यह कहर नहीं कोई..कर्मो का फल है मेरा…पाप क्या है ..की बस भारत में हूं जन्मा..
बैगरत कहो या कहो लाचार मुझे
पर मेरे मरनेका दो अधिकार मुझे
की ये पन्ने जीवन के बंद करने जा रहा हूं
ए आसमा ..ए जमीन
..ए खेत के हल मेरे
बिलखते हुए छोड़ तुझे खुद तरने जा रहा हूं।।
सुन स को तो तुम्हीं सुनो ए देशभक्तों…
तुम्हारे देश का किसान हूं…
आत्महत्या करने जा रहा हूं।।
मै मरने जा रहा हूं….!!!
कु प्रिया मैथिल