किसान
किसान –
किसान जवान नव जवान युग समय काल के निर्धारक अभिमान।।
संघर्ष ज्वाला में तपते भाग्य भगवान का विश्वास ।।
मौसम ऋतुओं से लड़ता शत्रु अनेक फिर भी निडर निर्विकार।।
अन्नदाता किसान धरती माँ कि संतान धरतीपुत्र विराट।।
समाज का पेट पालता स्वयं फटेहाल बदहाल कभी बाढ़ कभी सूखा का प्रकृति कि मार ।।
आश लगाए जीवन का युद्ध लड़ता रहता घरों का चूल्हों कि आग।।
ना कोई भूखा रहे पल प्रहर श्रम पराक्रम करता घुट घुट कर जीता मरता किसान।।
आहे भरता कह गए कवि घाग उत्तम खेती लेकिन निकृष्ट बन गया किनान ।।
धन लक्ष्मी को तरसता पैसे पैसे को मोहताज कर्ज के जंजाल में फंसता किसान।।
बेटी का व्याह बेटे कि शिक्षा दीक्षा हताश निराश किसान।।
कभी कभी जीवन स्वंय का स्वंय समाप्त कर देता किसान राष्ट्र कि शान ।।
हालत हालात से मजबूर कभी किसी भी हाल में नही चाहता भवि पीढ़ी बने किसान ।।
वाह दुनियां कितनी बदल गयी इंसान अन्नदाता किसान दबा कुचला समाज समय का अभिशाप।।